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________________ ५०३ चतुर्थ अध्याय । २-पित्तातीसार-इस में बेल की गिरी, इन्द्रजौं, मोथा, वाला और अतिविष, इन औषधों की उकाली लेनी चाहिये, क्योंकि यह उकाली पित्त तथा आम के दस्त को शीघ्र ही मिटाती है। अथवा-भतीस, कुड़ाकी छाल तथा इन्द्रजौं, इन का चूर्ण चावलों के धोवन में शहद डाल कर लेना चाहिये। ३-कफातीसार-इस में लङ्घन करना चाहिये तथा पाचनक्रिया करनी चाहिये। अथवा-हरद, दारुहलदी, बच, मोथा, सोंठ और अतीस, इन औषधों का काढ़ा पीना चाहिये। अथवा-हिङ्गाष्टक चूर्ण में हरड़ तथा सजीखार मिलाकर उस की फंकी लेनी चाहिये। ४-आमातीसार-इस में भी यथाशक्य लंघन करना चाहिये । अथवा-एरंडी का तेल पीकर कच्चे आम को निकाल डालना चाहिये। अथवा-गर्म पानी में घी डालकर पीना चाहिये। अथवा-सोंठ, सोंफ, खसखस और मिश्री, इन का चूर्ण खाना चाहिये । अथवा-सोंठ के चूर्ण को पुटपाक की तरह पका कर तथा उस में मिश्री डाल कर खाना चाहिये। ५-रक्तातीसार-इस में पित्तातीसार की चिकित्सा करनी चाहिये। अथवा-चावलों के धोवन में सफेद चन्दन को घिस कर तथा उस में शहद और मिश्री को डाल कर पीना चाहिये। अथवा-आम की गुठली को छाछ में अथवा चावलों के धोवन में पीस कर खाना चाहिये। . अथवा-कच्चे बेल की गिरी को गुड़ में लेना चाहिये। अथवा-जामुन, आम तथा इमली के कच्चे पत्तों को पीस कर तथा इन का रस निकाल कर उस में शहद घी और दूध को मिला कर पीना चाहिये। सामान्यचिकित्सा-१-आम की गुठली का मगेज (गिरी) तथा बेल की गिरी, इन के चूर्ण को अथवा इन के काथ को शहद तथा मिश्री डाल कर लेना चाहिये। २-अफीम तथा केशर की आधी चिरमी के समान गोली को शहद के साथ लेना चाहिये। १-सामान्य चिकित्सा अर्थात् जो सब प्रकार के अतीसारों में फायदा करती है ।। २-परन्तु आम की गुठली के मगज (गिरी) के ऊपर जो एक प्रकार का मोटा छिलकासा होता है उसे निकाल डालना चाहिये अर्थात् उसे उपयोग में नहीं लाना चाहिये ॥ ३-काथ में अवशिष्ट जल पावभर का छटांकभर रखना चाहिये ।। ४-चिरमी अर्थात् गुञ्जा, जिसे भाषा में घुघुची कहते हैं ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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