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________________ चतुर्थ अध्याय । ४१५ ११ - नये बुखारवाले का मूत्र किरमजी रंग का होता है तथा अधिक उतरता है । १२ - मूत्र करते समय यदि मूत्र की लाल धार हो तो बड़ा रोग समझना चाहिये, काली धार हो तो रोगी मर जाता है, मूत्र में बकरी के मूत्र के समान गन्ध आवे तो अजीर्ण रोग समझना चाहिये । १३ - मूत्रपरीक्षा के द्वारा रोग की साध्यासाध्यपरीक्षा - रोग साध्य ( सहज में मिटनेवाला ) है, अथवा कष्टसाध्य ( कठिनता से मिटनेवाला ) है, अथवा असाध्य ( न मिटनेवाला ) है, इस की संक्षेप से परीक्षा लिखते हैंप्रातःकाल चार घड़ी के तड़के रोगी को उठाकर उस के मूत्र को एक काच के सफेद प्याले में लेना चाहिये, परन्तु मूत्र की पहिली और पिछली धार नहीं लेनी चाहिये अर्थात् बिचली ( बीचकी ) धार लेनी चाहिये, तथा उस को स्थिर ( विना हिलाये डुलाये ) रहने देना चाहिये, इस के बाद सूर्य की धूप मैं घण्टे भर तक उसे रख के पीछे उस में एक घास के तृण ( तिनके ) से धीरे से तेल की बूंद डालनी चाहिये, यदि वह तेल की बूंद डालते ही मूत्रपर फैल जावे तो रोग को साध्य समझना चाहिये, यदि बूंद न फैले अर्थात् ऊपर ज्यों की त्यों पड़ी रहे तो रोग को कष्टसाध्य समझना चाहिये, अन्दर (मूत्र के तले) बैठ जावे अथवा अन्दर जाकर फिर की तरह फिरने लगे अथवा बूंद में छेद २ पड़ जावें अथवा मिल जावे तो रोग को असाध्य जानना चाहिये । तथा यदि वह बूंद ऊपर आकर कुण्डाले वह बूंद मूत्र के संग दूसरी रीति से परीक्षा इस प्रकार भी की जाती है कि यदि तालाब, हंस, छत्र, चमर, तोरण, कमल, हाथी, इत्यादि चिह्न दीखें तो रोगी बच जाता है, यदि तलवार, दण्ड, कमान, तीर, इत्यादि शस्त्रों के चिह्न उस बूंद के हो जावें तो रोगी मर जाता है, यदि बूंद में बुदबुदे उठें तो देवता का दोष जानना चाहिये इत्यादि, यह सब मूत्रपरीक्षा योगचिन्तामणि ग्रन्थ में लिखी है तथा इन में से कई एक बातें अनुभवसिद्ध भी हैं, क्योंकि केवल ग्रन्थ नहीं हो सकती है, देखो ! बुद्धिमानों ने यह सिद्धान्त करता उस्ताद और अनकरता शागिर्द होता है, ग्रन्थ के पित्त कफ खून तथा मिले हुए दोषों आदि की परीक्षा मूत्र है, किन्तु उस में जो २ विशेषतायें हैं वे तो नित्य के अभ्यास और बुद्धि के दौड़ाने से ही ज्ञात हो सकती हैं। के देखने से हो सकती I Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat के बांचने किया है बांचने से से ही परीक्षा कि - इल्म का केवल वायु डाक्टरी मत से मूत्रपरीक्षा - रसायनशास्त्र की रीति से मूत्रपरीक्षा की डाक्टरोंने अच्छी छानवीन ( खोज ) की है इस लिये वह प्रमाण करने ( मानने ) योग्य है, उनके मतानुसार मूत्र में मुख्यतया दो चीज़े हैं - युरिआ और एसिड, इनके सिवाय उस में नमक, गन्धक का तेजाब, चूना, फासफरिक ( फासफर्स ) www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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