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________________ चतुर्थ अध्याय । ३९१ रोग समय में चौगुना कष्ट दिखाई देता है, दूसरी प्रकृतिवाले का शरीर और मन ज्यों २ अवस्था आती जाती है त्यों २ शिथिल और मन्द पड़ता जाता है परन्तु वायुप्रधान प्रकृतिवाले का मन अवस्था के बढ़ने पर करड़ा और मजबूद होता जाता है, इस प्रकृतिवाले मनुष्य के अजीर्ण, बद्धकोष्ठ और अतीसार (दस्त) आदि पेट के रोग, शिर का दर्द, चसका, वातरक्त, फेफसे का वरम, क्षय और उन्माद आदि रोगों के होने का अधिक सम्भव होता है, इस प्रकृतिवाले मनुष्य की आयु शक्ति और धन थोड़ा होता है, इस प्रकृति के मनुष्य को तीखे चटपेट गर्मागर्म तथा खारी पदार्थों पर अधिक प्रीति होती है तथा खट्टे मीठे और ठंढे पदार्थों पर अप्रीति (अरुचि) होती है। पित्तप्रधान प्रकृति के मनुष्य-पित्तप्रधान प्रकृति के मनुष्य के शरीर के सब अंग और उपांग खूब सूरत होते हैं, उस के शरीर के बन्धान अच्छे तथा मांस के लोचे ढीले होते हैं, शरीर का रंग पिङ्गल होता है, बाल थोड़े करबरे होते हैं तथा जल्दी सफेद हो जाते हैं, शरीर पर थोड़ी २ फुनसियां हुआ करती हैं, उस को भूख प्यास जल्दी लगती है, उस के मुख शिर और बगल में से दुर्गन्ध आया करती है, इस प्रकृति का मनुष्य बुद्धिमान् और क्रोधी होता है, उस की आंख पेशाव तथा दस्त का रंग पीला होता है, वह साहसी उत्साही तथा केश करने पर सहने की शक्तिवाला होता है, उस की आयु शक्ति द्रव्य और ज्ञान मध्यम होते हैं, इस प्रकृतिवाले को अजीर्ण पित्त और हरस आदि रोगों के होने का अधिक सम्भव होता है, उस को मीठे तथा खट्टे रस पर अधिक प्रीति होती है तथा तीखे और खारी रस पर रुचि कम होती है। कफप्रधानप्रकृति के मनुष्य-कफ प्रधानप्रकृति के मनुष्य का शरीर रमणीय भरा हुआ तथा मजबूत होता है, शरीर का तथा सब अवयवों का रंग सुन्दर होता है, चमड़ी कोमल होती है, बाल रमणीक होते हैं, रंग स्वच्छ होता है, उस की आंखें चिलकती (चमकती) हुई सफेद तथा धूसर रंग की होती हैं, दाँत मैले तथा सफेद होते हैं, उस का स्वभाव गम्भीर होता है, उस में बल अधिक होता है, उसे नींद अधिक आती है, वह आहार थोड़ा करता है, उस की विचारशक्ति कोमल होती है, बोलने की शक्ति थोड़ी होती है, स्मरणशक्ति और विवेकबुद्धि अधिक होती है, उस के विचार न्याययुक्त होते हैं तथा व्यवहार अच्छे होते हैं, उस के शरीर की शक्ति से मन की शक्ति अधिक होती है, उस के शरीर की चाल मन्द होती है परन्तु मज़बूत होती है, इस प्रकृति का मनुष्य प्रायः ताकतवर धनवान् और लम्बीउम्रवाला होता है, उस के सामान्य कारण से रोग हो जाता है, कफ के संग रस की वृद्धि होती है, उस का शरीर भारी और मेवाला होता है, उस के द्वारा अशक्ति बढ़ती है, उस का शरीर बहुत स्थूल होता है, पेट की तोंद छिटक पड़ती है, उस के हाथ और सांधे बड़े तथा स्थूल होते हैं, मांस के लोचे ढीले होते हैं, उस का चेहरा विरस और फीका होता है, उस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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