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________________ ३१२ जैनसम्प्रदायशिक्षा। सबारी पर चढ़ कर हवा खाने को जाना और आकाश में उड़ना आदि कार्य उस को स्वम में अधिक दिखलाई देते हैं, इसे भी पूर्ववत् असत्य समझना चाहिये, क्योंकि प्रकृति के विकार से उत्पन्न होने से इस का भी कुछ फलाफल नहीं होता है। ७-स्वप्न वह सञ्चा होता है जो कि धर्म और कर्म के प्रभाव से आया हो, वह चाहे शुभ हो अथवा अशुभ हो, उस का फल अवश्य होता है। -रात्रि के प्रथम प्रहर में देखा हुआ स्वप्न बारह महीने में फल देता है, दूसरे प्रहर में देखा हुआ स्वप्न नौ महीने में फल देता है, तीसरे प्रहर में देखा हुआ स्वप्न छः महीने में फल देता है और चौथे प्रहर में देखा हुआ स्वम तीन महीने में फल देता है, दो घड़ी रात बाकी रहने पर देखा हुआ स्वग्न दश दिन में और सूर्योदय के समय में देखा हुआ स्वप्न उसी दिन अपना फल देता है। ९-दिन में सोते हुए पुरुष को जो स्वप्न आता है वह भी असत्य होता हे अर्थात् उस का कुछ फल नहीं होता है। १०-अच्छा स्वप्न देखने के बाद यदि नींद खुल जावे तो फिर नहीं सोना चाहिये किन्तु धर्मध्यान करते हुए जागते रहना चाहिये। ११-बुरा स्वप्न देखने के बाद यदि नींद खुल जावे और रात अधिक बाकी हो तो फिर सो जाना अच्छा है। १२-पहिले अच्छा स्वप्न देखा हो और पीछे बुरा स्वप्न देखा हो तो अच्छे स्वप्न का फल मारा जाता है (नहीं होता है), किन्तु बुरे स्वप्न का फल होता है, क्योंकि बुरा स्वम पीछे आया है। ___ १३-पहिले बुरा स्वप्न देखा हो और पीछे अच्छा स्वप्न देखा हो तो पिछला ही स्वप्न फल देता है अर्थात् अच्छा फल होता है, क्योंकि पिछला अच्छा स्वम पहिले बुरे स्वप्न के फल को नष्ट कर देता है। __यह स्वप्नों का संक्षेप से वर्णन किया गया, अब प्रसंगानुसार निद्रा के पिय में कुछ आवश्यक नियमों का वर्णन किया जाता है: १-पूर्व अथवा दक्षिण की तरफ सिर करके सोना चाहिये। २-सोने की जगह साफ एकान्त में अर्थात् गड़बड़ वा शब्द से रहित और हवादार होनी चाहिये। ३-सोने के बिछौने भी साफ होने चाहियें, क्योंकि मलिन जगह और र लिन १-अच्छा स्वप्न देखने के बाद जागते रहने की इस हेतु आशा है कि सो जाने पर फिर कोई बुरा स्वप्न आकर पहिले अच्छे स्वप्न के फल को न विगाड़ डाले ।। २-परन्तु अफसोस तो इस बात का है कि भले वा बुरे स्वप्न की पहचान भी तो सब लोगों को नहीं होती है ।। ३-स्वप्नों का पूरा वर्णन देखना हो तो हमारे बनाये हुए. अष्टानिमित्तरलाकर नामक ग्रंथ में देखो, उस का मूल्य १) रुपया मात्र है। www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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