SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८४ जैनसम्प्रदायशिक्षा | इस ऋतु में अपथ्य -- तलघर में बैठना, नदी या तालाव का गेंदला जल पीना, दिन में सोना, धूप का सेवन और शरीर पर मिट्टी लगाकर कसरत करना, इन सब बातों से बचना चाहिये । इस ऋतु में रूक्ष पदार्थ नहीं खाने चाहियें, क्योंकि रूक्ष पदार्थ वायु को बढ़ाते हैं, ठंढी हवा नहीं लेनी चाहिये, कीचड़ और भीगी हुई पृथिवी पर नंगे पैर नहीं फिरना चाहिये, भीगे हुए कपड़े नहीं पहरने चाहिये, हवा और जल की बूंदों के सामने नहीं बैठना चाहिये, घर के सामने कीचड़ और मैलापन नहीं होने देना चाहिये, बरसात का जल नहीं पीना चाहिये और न उस में नहाना चाहिये, यदि नहाने की इच्छा हो तो शरीर में तैल की मालिस कर नाहना चाहिये, इस प्रकार से आरोग्यता की इच्छा रखनेवालों को इन चार मानतक ( प्रावृद्ध और वर्षा ऋतु में ) वर्त्तीव करना उचित है । शरद् ऋतु का पथ्यापथ्य । सब ऋतुओं में शरद ऋतु रोगों के उपद्रव की जड़ है, देखो ! वैद्यकशास्त्रकारों का कथन है कि- “ रोगाणां शारदी माता पिता तु कुसुमाकरः " अर्थात् शरद ऋतु रोगों को पैदा करनेवाली माता है और वसन्त ऋतु रोगों को पैदा कर पाल - नेबाला पिता है, यह सब ही जानते हैं कि सब रोगों में ज्वर राजा है और ज्वर ही इस ऋतु का मुख्य उपद्रव है, इसलिये इस ऋतु में बहुतरि संभाल कर लिना चाहिये, वर्षा ऋतु में सञ्चित हुआ पित्त इस ऋतु के ताप की गर्मी से शरीर में कुपित होकर बुखार को करता है तथा बरसात के कारण ज़मीन भीगी हुई होती है इसलिये उस से भी धूप के द्वारा जल की भाफ उठ कर हवा को बिगाड़ती है, विशेष कर जो देश नीचे हैं अर्थात् जहां बरसात का पानी भरा रहता है वहां भाफ के अधिक उठने के कारण हवा अधिक बिगड़ती है, बस यही जहरीली हवा ज्वर को पैदा करनेवाली है, इस लिये शीतज्वर, एकान्तर, तिजारी और चौथिया आदि विषम ज्वरों की यही खास ऋतु है, ये सब ज्वर केवल पित्त के कुपित होने से होते हैं, बहुत से मनुष्यों की सेवा में तो ये ज्वर प्रतिवर्ष आकर हाजिल देते हैं और बहुत से लोगों की सेवा को तो ये मुहततक उठाया करते हैं, जे ज्वर शरीर में मुद्दततक रहता है वह छोड़ता भी नहीं है किन्तु शरीर को मिट्टी में मिला कर ही पीछा छोड़ता है तथा रहने के समय में भी अनेक कष्ट देता है अर्थात् तिल्ली बढ़ जाती है, रोगी कुरूप हो जाता है तथा जब ज्वर जीर्णरूप से शरीर में निवास करता है तब वह वारंवार वापिस आता और जाता है अर्थात् पीछा नहीं छोड़ता है, इस लिये इस ऋतु में बहुत ही सावधानता के साथ अपनी १- इस हवा को अंग्रेजी में मलेरिया कहते हैं तथा इस से उत्पन्न हुए को मलेरिया फीवर कहते हैं | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy