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________________ २६६ जैनसम्प्रदायशिक्षा । ज्ञाता है, स्नायु आदि चरबी से रुक कर शरीर अशक्त हो जाता है और चर वी के पड़तपर पड़त चड़ जाता है । स्थूल होकर जो शक्तिमान् हो उस की परीक्षा यह है कि-ऐसे पुरुषका शरीर (रक्त के विशेष होने के कारण) लाल, दृढ़, कठिन, गैठा हुआ और स्थिति थापक स्नायुओं के टुकड़ों से युक्त होता है तथा उस पर चरवी का बहुत हलका अस्तर लगा रहता है, किन्तु जो पुरुष स्थूल होकर भी शक्तिहीन होते हैं उः में ये लक्षण नहीं दीखते हैं, उन में थोथी चरत्री का भाग अधिक बढ़ जाता है । इस से उन को परिश्रम करने में बड़ी कठिनता पड़ती है, वह बड़ी हुई चरबी तर काम देती है जब कि वह खुराक की तंगी अथवा उपवास के द्वारा न्यून हो जाती है, सत्य तो यह है कि शरीर को खुब सूरत और सुडौल रग्बना चरबी ही क काम है, बड़ी हुई चरवी से बहुत स्थूलता और श्वास का रोग हो जाता है तथा आखिर कार इस से प्राणान्त तक भी हो जाता है। __ मीठा और आटे के सत्यवाला पदार्थ भी परिश्रम न करनेवाले म प्य के शरीर में चरबी के भाग को बढ़ाता है. इस में बड़ी हानि की बात यह है कि अधिक भेद और चरबी वाले पुरुपको रोग के समय दवा भी बहुत ही कम कायदा सी है, और करती भी है तो भाग्ययोग से ही करती है। साधारण खुराक के उपयोग और शक्त्यनुलार कमाल के अभ्यास से दरीर की स्थूलता मिट जाती है अर्थात् चरबी का वज़न कम हो जाता है ।। __ अति स्थूल शरीरवाले मनुष्य को खाने आदि के विषय में जिन :ों का खयाल रखना चाहिये उन का संक्षेप से वर्णन करते हैं:_स्थूल मनुप्यों के पतले होने के उपाय-स्थूल मनुष्यों को घी मक्खन और खांड आदि चरवीवाले पदार्थ तथा आटे के सत्ववाले पदार्थ बहुत ही थोड़े खाने चाहियें, पुष्टिवाले पदार्थ अधिक खाने चाहिये, गेहूँ सलगम और नारंगी आदि फल खाने चाहियें; घी, मक्खन, मलाई, तेल, खांड़, चरवीवा ले अन्न, साबूदाना, चावल, मका, पूरणपोली, कोकम, आम, दाल, केला, बादाम, पिस्ता, नेजा और चिरौंजी आदि मेवे, आलू , सूरण, सकरकन्द और अरबी आदि पदार्थ नहीं खाने चाहिये, अथवा बहुत ही कम खाने चहिये; दूध थोड़ा खाना चाहिये, यदि चाय और काफी के पीने का अभ्यास हो तो उस में दृध बहुत ही छोड़ा सा डालना चाहिये अथवा नींबू से सुवासित कर के पीना चाहिये। मगज़ के मज्जा तन्तुओं को दृढ़ करनेवाली खुराक । जिस खुराक में आलव्युमीन नामक तत्व अधिक होता है वह मगज़ वेः मजातन्तुओं का पोषण करती है, पौष्टिक तत्ववाली खुराक में आलव्युमीन का कुछ २ अंश होता है परन्तु सतावर आदि कई एक वनस्पतियों में इस का अंश बहुत ही होता है इस लिये सतावर आदि वनस्पतियों का पाक तथा मुरब्बा बना कर खाना चाहिये, मगज़ तथा वीर्य की दृढ़ता के लिये वैद्यकशास्त्र में बहुत सी उत्तम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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