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________________ २६२ जैनसम्प्रदायशिक्षा। सरमोंका तेल, गोमूत्र, आकाशका गूंदा, गरमर, अजीर, जामुन, बेर, पानी, कुए का पानी और हँसोदक इमली और तरबूज । जल, परवल, सूरण, चदलिया, बथुआ, भैंस का दूध, दही, तेल, नयागुड़, मेथी, मामालूणी, मूली, मोगरी, कद्द, वृक्षों के झुण्ड का पानी, एकदम अधिक धियातोरई, तोरई, करेला, ककड़ा, पानी का पीना, निराहार टंढा पानी भिण्डी, गोभी, (वालोल थोडी) पीना और मैथुन करके पानी पीन। और कच्चे केले का शाक। बासा अन्न, छाछ और दही के साथ खिचड़ी और खीचड़ा आदि दाल मिले दाख, अनार, अदरख, आँवला, हुए पदार्थों का खाना, सूर्य के प्रकाश नींबू, बिजौरा, कवीठ, हलदी, धनिये के हुए विनाखाना, अचार, समयके पत्ते, पोदीना, हींग, सोंठ, काली, विरुद्ध भोजन करना और सब प्रकार के विपों का सेवन । मिर्च, पीपर, धनिया, जीरा और सेंधा ___ठंढी खीर चासनी और खोवे नमक। (मावे) के पदार्थों के सिवाय दूध के हरड़, लायची, केशर, जायफल, सब बासे पदार्थ, गुजरात के गोंटिया तज, सोंफ, नागरवेल के पान, कत्थे लड़, केले के लड्डु, रायण के लडु, की गोली, धनियां, गेहूं के आटे की गुलपपड़ी, तीन मिलावटों के तथा रोटी, पूड़ी, भात, मीठाभात, बुंदिया, वा, पांच मिलावटों की दालें, क: कच्चे मोतीचूरके लड्डु, जलेबी, चूरमा, दिल और गरिष्ठ पदार्थ, मैद की पूई , सत्त, खुशाल, पूरणपूड़ी, रबड़ी, दूधपाक पेड़ा, बरफी, चावलों का वेड़वा, (खीर), श्रीखण्ड (शिखरन), मैदेका रात्रि का भोजन, दस्त को बन्द करनेसीरा, दालके लड्डु, घेवर, सकरपारे, वाली चीज़, अत्युष्ण अन्नपान, वमन, बादाम की कतली, घी में तले हुए पिचकारी दे दे कर दस्त कराना चबेने मोठ के मुजिये (थोड़े ), दूध और का चावना, पांच घण्टेसे पूर्व ही घी डाले हुए सेव, रसगुल्ला, गुलाब भोजनपर भोजन करना, बहु' भूखे रहना, भूख के समय में जलकः पाना, जामुन, कलाकन्द, हेसमी (कोलेका प्यासके समयमें भोजन करना मात्रा पेठा), गुलकन्द, शर्बत, मुरब्बा, चिरोंजी, पिस्ता, दाखों का मीठा तथा । से अधिक भोजन करना, विचमासन चरपरा राइता, पापड़, मूंग और मोठ . से बैट कर भोजन करना, नेदा से की बड़ी और सब प्रकार की दाल । उठकर तत्काल भोजन करना जल का पीना, व्यायाम के पीछे शीघ्रही प्रकृति ऋतु और देश आदि को जलका पीना, बाहर से आकर शीघ्रही विचार कर किया हुआ भोजन तथा जल का पीना, भोजन के अन्त में ५-यद्यपि इस बात को आधुनिक डाक्टर लोग पसन्द करते हैं तथापि हमारे प्राचीन शास्त्रकारी ने सला. से पेशाब तथा बरती ( पिचकारी ) से दस्त कराना पसन्द नहीं किया है और इसका अन्यास भी अछा नहीं है, दां कोई खास करणा हो तो दूसरी बात है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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