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________________ जैनसम्प्रदायशिक्षा | कपूरनाली - इस में गुझिया वा गूझा के समान गुण हैं । फेनी - बृंहण, वृष्य, बलकारी, अत्यन्त रुचिकारी, पाक में भी मधुर, ग्रही, और त्रिदोषनाशक हैं तथा हलकी भी हैं । २५६ मैदा की पूड़ी-इन में भी फेनी के समान सब गुण हैं । सेब के लड्डू –इन में भी सब गुण फेनी के समान ही हैं । यह संक्षेप से मिश्रवर्ग का कथन किया गया है, बुद्धिमान् तथा श्रीमानों को उचित है कि - निकम्मे तथा हानिकारक पदार्थों का सेवन न कर के इस वर्ग में कहे हुए उपयोगी पदार्थों का सदैव सेवन किया करें जिस से उन का सदैव शारीरिक और मानसिक बल बढता रहे । यह चतुर्थ अध्यायका वैद्यकभाग निघण्टुनामक पांचवां प्रकरण समाप्त हुआ || १- मोवन दी हुई मैदा को उसन कर लम्बा सम्पुट बनावे, उस में लौंग भीमसेनी कपूर तथा खांड को मिला कर भर देवे, फिर मुख को बंद करके घी में सेक लेवे, इस को कर्पूरनालिका कहते हैं ॥ २- प्रथम मैदा को सान कर उस में घी डालकर लम्बी २ बत्ती सी बनावे, फिर उन को लपेट कर पुनः लम्बी बत्ती करे, इस के बाद उन को बेलन से बेलकर पापड़ी वना लेवे, फिर इन को चाकू से कतर पुनः बेले, फिर इन पर सट्टक का लेप करे (चावलों का चून घी और जल, इन सब को मिला कर हथेली से मथ डाले, इस को सट्टक कहते हैं ) अर्थात् सट्टक से लोई को लपेट कर बेल लेवे अर्थात् उसे गोल चन्द्रमा के आकार कर लेवे, फिर इनको घी में सेके, घी में सेकने से उन में अनेक तार २ से हो जावेंगे, फिर उनको चासनी में पाग लेवे, अथवा सुगन्धित बूरे में लपेट लेवे इन को फेनी कहते है || ३- मोवन डाली हु. मैंदा को उसन के लोई करे, फिर उन को पतली २ बेलकर घी में छोड़ देवे, जब सिक जात्रे तव उतार ले ॥ ४ - मोवन डाली हुई मैदा के सेव तैयार करके घी में सेक लेवे, फिर इन के टुकड़े कर के खांड में पाग कर लड्डू बनालेवे ॥ ५- इस मिश्रवर्ग में कुछ आवश्यक थोड़े से ही पदार्थों का वर्णन किया गया है तथा उन्हीं में से कुछ पदार्थों के बनाने की विधि भी नोट में लिखी गई है, शेष पदार्थों का वर्णन तथा उन के बनाने आदि की विधि, एवं उनके गुण दूसरे वैद्यक ग्रन्थों में तथा पाकशास्त्र में देखना चाहिये, यहां विस्तार के भय से उन सब का वर्णन नहीं किया गया है | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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