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________________ चतुर्थ अध्याय । २५५ कांजी बरा-रुचिकारी, वातनाशक, कफकारक, शीतल तथा शूलनाशक हैं, एवं दाह और अजीर्ण को दूर करते हैं, परन्तु नेत्ररोगी के लिये अहित हैं। इमली के बरे-रुचिकारी, अग्निदीपक तथा पूर्व कहे हुए बरों के समान गुणवाले हैं। मुंग बरा-मूंग के बरे (बड़े) छाछ में परिपक्क करके तैयार किये जावें तो वे हलके और शीतल हैं तथा ये संस्कार के प्रभाव से त्रिदोषनाशक और पथ्य हो जाते हैं। अलीकमत्स्य-खाने में स्वादिष्ठ तथा रुचिकारी हैं, इन को बथुआ के शाक से अथवा रायते से खाना चाहिये । मूंग अदरख की बैड़ी-रुचिकारक, हलकी, बलकारी, दीपन, धातुओं की तृप्ति करनेवाली, पथ्य और त्रिदोषनाशक हैं। पकोरी-रुचिकारी, विष्टम्भकर्ता, बलकारी और पुष्टिकारक हैं । गुझा वा गुझिया-बलकारक, बृंहण तथा रुचिकारी हैं। १-एक मिट्टी का घड़ा लेकर उस के भीतर कडुआ तेल चुपड़ देवे, फिर उस में स्वच्छ जल भर कर उस में राई, जीरा, नमक, हींग, सोंठ और हलदी, इन का चूर्ण डाल कर उड़द के बड़ी को उस जल में भिगो देवे और उस घड़े के मुख को बंद कर किसी एकान्त स्थान में धर दवे, बस ३ दिन के वाद खट्टे होने पर उन्हें काम में लावे ॥ २-पकी इमली को औटा कर जल में ही उसे खूब मींजे, फिर किसी कपड़े में डालकर उसे छान लेने तथा उसमें नमक, मिर्च, जीरा आदि यथायोग्य मिलाकर मँगोडियों को भिगो देवे, ये इमली के बरे कहलाते है । ३-उड़द की पिट्ठी में बड़े साबत पानों को लपेट कर युक्ति से कढ़ाई में सेके, फिर उन को उतर कर चाकू से कतर लेवे पीछे उन को तेलमें तल लेवे इन को अलीकमत्स्य कहते हैं । ४-मूंग से बनी हुई बड़ियों को तेल में तलकर हाथ से चूर्ण कर डाले, इसमें भुनी हींग, छोटे २ 'दरखके टुकडे, मिर्च, जीरा, नींबू का रस और अजमायन, इन सब को युक्ति से मिला कर उस पिट्टी को कढ़ाई में अथवा तवे पर फैलादे, फिर इस के गोले बनाकर भीतर मसाला भर के उन गोलों को तेल में सिद्ध करे, जब सिक जावें तब उतार कर कढ़ी में डाल देवे ।। ५-चने की बिनी छनी दाल को चक्की से पीस कर बेसन बना लेवे, उस बेसन को उसन कर तथा नमक आदि डाल कर बड़ियां बनाकर घी या तेल में कढाईमें पकावे, इन को पकोड़ी कहते हैं, इन को कढ़ी में भी डालते हैं ॥ ६-मैदा और घी को मिलाकर पापड़ी बनाकर घी में सेक लेवे, जब सिक जावें तब निकाल कर कूट डाले, फिर बारीक चालनी में डालकर छान लेवे, इस में सफेद बूरा मिला कर एकजीव कर ले तथा इलायचीदाने, लौंग, काली मिर्च, नारियल गिरी और चिरोंजी आदि डाल देवे, फिर मोमन (मोवन) दी हुई मैदा की मोटी और वडी रोटी सी बेल कर उस के भीतर इस कूर को भरे और फिर इस की गुझिया बना कर किनारों को गूंथ देवे, फिर कढ़ाई में घी देके इन को सेक लेवे, इन को गूझा या गुझिया कहते हैं, ये होली के त्यौहार पर प्रायः पूर्व में बनाये जाते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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