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________________ चतुर्थ अध्याय । २४३ खाते हैं तथा उस से यह लाभ समझते हैं कि ये मसाले गर्म होने के कारण जठराग्नि को प्रदीप्त करेंगे जिस से पाचनशक्ति बढेगी और खुराक अच्छी तरह से तथा अधिक खाई जावेगी तथा वीर्य में भी गर्मी पहुंचने से उत्तेजनशक्ति बढ़ेगी इत्यादि, परन्तु यह सब उन लोगों का अत्यन्त भ्रम है, क्योंकि-प्रथम तो मसालों में जितनी वस्तुयें डाली जाती हैं वे सब ही सब प्रकृतिवालों के लिये तथा सर्वदा अनुकूल होकर शरीर की आरोग्यता को बनायें रक्खें यह कभी नहीं हो सकता है; दूसरे-मसालों में बहुत से पदार्थ ऐसे हैं कि जो इन्द्रियों को बहकानेवाले तथा इन्द्रियों के उत्तेजक होकर भी शरीर के कई अवयवों में बाधा पहुँचाते हैं; तीसरे-मसालो में बहुत से ऐसे पदार्थ हैं जो कि शरीर की बीमारी में दवा के तौर पर दिये जाते हैं, जैसे-छोटी बड़ी इलायची, लौंग, सफेद जीरा, स्याह जीरा, दालचीनी, तेजपात और काली मिर्च आदि, अब यदि प्रतिदिन उन्हीं पदार्थों का अधिक सेवन किया जावे तो वे दवा के समय अपना असर नहीं करते हैं; चौथे-खुराक में सदा गर्म मसालों का खाना अच्छा भी नहीं है, क्योंकि स्वाभाविक जठराग्नि को दूसरे मसालों की बनावटी गर्मी से बढ़ा कर अधिक खुराक का खाना अच्छा नहीं है क्योंकि यह परिणाम में हानि करता है, देखो! एक विद्वान् का कथन है कि-"इलाज और खुराक वे ही अच्छे हैं जिन का परिणाम अच्छा हो, अर्थात् जिन से परिणाम में किसी प्रकार की हानि न हो" आहा! यह कैसा अच्छा उपदेशदायक वाक्य है, क्या यह वाक्य सामान्य प्रजा के सदा याद रखने का नहीं है ? इसलिये गर्म मसालों तथा अत्यन्त तीक्ष्ण मसालेदार चटनी आदि सब पदार्थों को प्रतिदिन नहीं खाना चाहिये, क्योंकि इन का सदा सेवन करना सब मनुष्यों के लिये कभी एक सदृश हितकारक नहीं होसकता है, यद्यपि यह शक है कि गर्म मसाले वा मसालेदार पदार्थ रुचि को अधिक जागृत करते • हैं, था जठराग्नि को भी अधिक तेज़ करते हैं जिस से खाना अधिक खाया जाता है, परन्तु स्मरण रखना चाहिये कि स्वाभाविक जठराग्नि के समान मसालों की गर्मीन उत्पन्न हुई कृत्रिम अग्नि पदार्थों को यथावस्थित (ठीक तौर से) कभी नहीं पचा सकती है, जैसे एञ्जिन में बायलर को अधिक ज़ोर मिलने से वह गाड़ियों को जोर से तो चलाता है परन्तु बायलर के माप और परिमाण से गर्मी के अधिक बढ़ जाने से अधिक भार को खींचता हुआ वह कभी फट भी जाता है, जैसे अधिक भार को खोंचने के लिये बायलर को अधिक गर्मी की आवश्यकता हो यह नियम नहीं है किन्तु अधिक भार को खींचने के लिये बड़े एञ्जिन और बड़े ही बायलर की आवश्यकता है इसीप्रकार जन्म से छोटे कदवाला आदमी दिल में यदि ऐसा १- क्योंकि वे खुराक के तौर पर हो जाते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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