SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ अध्याय । एक वृक्ष की जड़ में पानी डाला जाता है तो वह पानी रसरूप में होकर पहिले बड़ी २ डालियों में, बड़ी डालियों में से छोटी २ डालियों में और वहां से पत्तों के अन्दर पहुँच कर सब वृक्ष को हरा भरा और फूला फला रखता है, उसी प्रकार पिया हुआ पानी भी खुराक को रस के रूप में बना कर शरीर के सब भागों में पहुंचा कर उन का पोषण करता है, परन्तु जब प्यासे प्राणी को पानी कम मिलता है अथवा नहीं मिलता है तब शरीर का रस और लोहू गाढ़ा होने लगता है, तथा गाढ़ा हाते २ आखिर को इतना गाढ़ा हो जाता है कि-उस ( रस और रक्त) की गति बन्द हो जाती है और उस से प्राणी की मृत्यु हो जाती है, क्योंकि लोहू के फिरने की बहुत सी नलियां बाल के समान पतली हैं, उन में काफी पानी के न पहुंचने से लोहू अपने स्वाभाविक गाढ़ेपन की अपेक्षा विशेष गाढ़ा हो जाता है और लोहूके गाढ़े होजानेसे वह (लोहू) सूक्ष्म नलियोंमें गति नहीं कर सकता है। ___ यद्य पे पानी बहुत ही आवश्यक पदार्थ है तथा काफी तौर से उस के मिलने की आवश्यकता है परन्तु इस के साथ यह भी समझ लेना चाहिये कि-जिस कदर पानी की आवश्यकता है उसी कदर निर्मल पानी का मिलना आवश्यक है, क्योंकि-यदि काफी तौर से भी पानी मिल जाये परन्तु वह निर्मल न हो अर्थात् मलिन हो अथवा विगड़ा हुआ हो तो वही पानी प्राणरक्षा के बदले उलटा प्राणहर हो जाता है इस लिये पानी के विषय में बहुत सी आवश्यक बातें समझने की है-जिन के समझने की अत्यन्त ही आवश्यकता है कि-जिस से खराब पानी से बचाव हो कर निर्मल पानी की प्राप्ति के द्वारा आरोग्यता में अन्तर न आने पावे, क्योंकि खराब पानी से कितनी बड़ी खराबी होती है और अच्छे पानी से कितना बड़ा लाभ होता है-इस बात को बहुत से लोग अच्छे प्रकार से नहीं जानते हैं किन्तु सामान्यतया जानते हैं, क्योंकि-मुसाफरी में जब कोई वीमार पड़ जाता है तब उस के साथवाले शीघ्र ही यह कहने लगते हैं कि-पानी के बदलने से ऐसा हुआ है, परन्तु बहुत से लोग अपने घर में बैठे हुए भी खराब पानी से बीमार पड़ जाते हैं और इस बात को उन में से थोड़े ही समझते हैं कि-खराब पानी से यह बीमारी हुई है, किन्तु विशेष जनसमूह इस बात को बिलकुल नहीं समझता है कि- वराव पानी से यह रोगोत्पत्ति हुई है, इसलिये वे उस रोग की निवृत्ति के लिये मृर्य वैद्यों से उपाय कराते २ लाचार होकर बैठ रहते हैं, इसी लिये वे असली कारण को न विचार कर दूसरे उपाय करते २ थक कर जन्म भर तक अनेक कःखों को भोगते हैं। पानी के भेद । पानी का खारा, मीठा, नमकिन, हलका, भारी, मैला, साफ, गन्धयुक्त और १-कि उन मूर्ख वैद्यों को भी यह बात नहीं मालूम होती है कि पानी की खराबी से यह रोगोत्पति हुई है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy