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________________ १२८ जैनसम्प्रदायशिक्षा | से बालक कद में छोटे और जुस्सा रहित हो जाते हैं, इसी प्रकार गर्मी में खुले शरीर से मैदान में घूमने से काले हो जाते हैं, उन को लू लग जाती है और बीमार हो जाते हैं, एवं वर्षा ऋतु में भी खुले फिरने से श्याम हो जाते हैं और सर्दी आदि भी लग जाती है तथा ऐसे वर्ताव से अनेक प्रकार के रोगों का उन्हें शरण लेना पड़ता है, शीत गर्मी और वर्षा ऋतु में बालकों को खुले ( उघाड़े ) घूमने देने से शरीर से मजबूत होने की आशा नष्ट हो जाती है क्योंकि ऐसा होने से उनके अवयवों में अनेक प्रकार की त्रुटि हो जाती है और वे प्रायः रोगी हो जाते हैं, बालकों के शरीर पर सूर्य का कुछ तेज पड़ता रहे ऐसा उपाय करते रहने चाहिये, घर में उन को प्रायः गोढ़ ही में नहीं रखना चाहिये, शरीर में उष्णता रखने के लिये पूरे कपड़ों का पहनाना मानो उतनी खुराक उन के पेट में डालना है, शरीर पर पूरे कपड़े पहनाने से उष्णता कम जाती है और उष्णता के कायम रहने से अरोगता रहती है, बालकों को ऋतुके अनुकूल ख पहनाने में जो मा बाप द्रव्य का लोभ करते हैं तथा बालकों को उघाड़े पिरने देते हैं यह उनकी बड़ी भूल है क्योंकि ऐसा होने से शरीर की गर्मी कम हो जाती है तथा गर्मी कम हो जाने से उस (गर्मी) को पूर्ण करने के लिये अधिक खुराक खानी पड़ती है, जब ऐसा करना पड़ा तो समझ लीजिये कि जितना कपड़े का खर्च बचा उतना ही खुराक का खर्च बढ़ गया फिर लोभ करने से क्या लाभ हुआ ? किन्तु ऐसे विपरीत लोभसे तो केवल शरीर को हानि ही पहुँचती है - इस लिये बालक को ऋतु के अनुकूल वस्त्र पहनाना ही लाभदायक है । ४- दूधपिलाना- -- बालक के उत्पन्न होने पर शीघ्र ही उस को दूध नहीं पिलाना चाहिये अर्थात् बालक को माता का दूध तीन दिने तक नहीं पिलाना चाहिये १ - परन्तु इस विषय में किन्हीं लोगों का यह मत है कि-बालक के उत्पन्न होने के पीछे जब माता की थकावट दूर होजावे तव तीन या चार घण्टे के बाद से बालकको माता का ही दूध पिलाना चाहिये, वे यह भी कहते हैं कि - "कोई लोग बालक को एक दो दिन तक माताका दूध नहीं पिलाते हैं. किन्तु उस को गलथुली चटाते हैं सो यह रीति ठीक नहीं है क्योंकि वालय के लिये तो माता का दूध पिलाना ही उत्तम है, बालक के उत्पन्न होने पर को उस तीन या चार घण्टे के बाद माता का दूध पिलाने से बहुत ही लाभ होता है. क्योंकि माता के दूध का प्रथम भाग रेचक होता है इस लिये उस के पीने से गर्भस्थान में रहने के कारण बालक के पेट की हड्डियों में लगा हुआ काला मल दूर होजाता है और माता को पीछे से आनेवाले वेग के कम होजाने से रक्त प्रवाह के होने का सम्भव कम रहता है, यदि बालक को एक दो दिन तक माताका दूध न पिलाया जावे तो फिर वह (बालक) माता का दूध पीने नहीं लगता है और ऐसा होने से स्तन दूधसे भर जाने के कारण पक जाते हैं, इसलिये प्रथम से ही बालक को माता का ही दूध पिलाना चाहिये, बालक को प्रथम से ही माता का दूध पिलाने से यह भी लभ होता है कि यदि माता के स्तनों में दूध न भी हो तो भी आने लगता है" इत्यादि, परन्तु तमाम ग्रन्थों और अनेक विद्वज्जनों की सम्मति इस कथन से विपरीत है अर्थात् उनकी सम्मति वही है जो कि हमने ऊपर लिखा है, अर्थात् जन्म के पीछे तीन या चार दिन के बादसे बालक को माता का दूध पिलाना चाहिये ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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