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________________ तृतीय अध्याय । १२७ परन्तु मलीन वस्त्र कभी नहीं पहनाने चाहियें, क्योंकि बालक के शरीर तथा उस के कपड़े की स्वच्छताद्वारा प्रत्येक पुरुष अनुमान कर सकेगा कि इस (बालक) की माता चतुर और सुघड़ है - किन्तु इस से विपरीत होने से वो सब ही यह अनुमान करेंगे कि - बालककी माता फूहड़ होगी, अन्य शत्रयों की अपेक्षा दक्षिण की स्त्रियां सुड़ और चतुर होती हैं और यह बात उन के बालकोंकी स्वच्छता के द्वारा ही जानी तथा देखी जा सकती है 1 चालकको प्रायः बाहर हवा में भी घुमाने के लिये ले जाना चाहिये परन्तु उस समय फलालेन आदि के गर्म कपड़े पहनाये रखने चाहियें योंकि फायन आदि का पहनाये रखने से बारह की ठंडी हवा लगने से सही नहीं व्यापती है तथा उस समय में उक्त वस्त्र पहनाये रखने से भीतरी गर्मी बाहर नहीं कपात है और बाहर की सर्दी भीतर जा सकती है, बालक को सर्दी के दिन में कानटोपी और पैरों में मोज़े पहनाये रखने चाहियें, यदि मोज़े न हों तो पैरों पर कपड़ा ही लपेट देना चाहिये, कानटोपी भी हो तो बहुत को शीघ्र ही करने से सर्दी ही लाभदायक होती है, मल सूत्र और अर से भीगे हुए कपड़े बदल कर दूसरा स्वच्छ वस्त्र पहना देना चाहिये क्योंकि ऐसा न state है, गीत तथा वर्षा ऋतु में हवा में बाहर घुमाने के लिये ले जा तो आंख और मुंहके सिवाय सब शरीर को शाल या किसी गर्म कपड़े से ढक कर ले जाना चाहिये, लार गिरती हो तो उस जगह पर रूमाल वा कोई कपड़ा रखना चाहिये, दालक के पैर, सीना (छाती) और पेट को सदा गर्म रखना चाहिये किन्तु इन अंगों को ठंढे नहीं होने देना चाहिये वस ऊपर लिखी रीति के अनुसार बालक को खूब हिफाजत के साथ कपड़े पहनाने चाहियें क्योंकि ऐसा न करने से बहुत हानि होती है, वालक को इतने अधिक पत्र भी नहीं पहनाने चाहियें कि जिन से वह पसीना युक्त होकर घबड़ा जाये, इसी प्रका गर्मी में भी बहुत कपड़े नहीं पहनाने चाहिये कि जिस से वारंवार पसी निकलता रहे क्योंकि बहुत पसीना निकलने से शरीर बलहीन हो जाता है, इसलिये गर्मी में बारीक व पहनाने चाहिये, बालक की वचा बहुत ही नाजुक और मुलायम होती है इस लिये उस को कपड़े भी बहुत मुलायम और ढीले पहनाने चाहियें, हरे रंग में सोमल का विष होता है इस लिये हरे ब नहीं पहनाने चाहियें क्योंकि बालक उस को मुंह में डाल ले तो हानि हो जाती है, इसी प्रकार वह रंग त्वचासे लगने से भी हानि पहुँचती है, यथाशक्य ( जहां तक हो सके ) भभका और टाप टीप पर मोहित न हो कर बालक को सुखवारी कपड़े पहनाने चाहियें, वालकों को शीत ऋतु में खुला ( उघाड़ा ) नहीं रखना चाहिये और व वारीक पत्र पहना कर अथवा आधे खुले शरीर से खुले मैदान में बाहर जाने देना चाहिये क्योंकि ऐसा होने से शीत लग जाने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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