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________________ तृतीय अध्याय । १२५ मलाना चाहिये और यदि ठंढ न हो तो चारपाई पर कोई हलका मुलायम वस्त्र बिछाकर उसपर बालक को सुलाना चाहिये, इस कार्य के करने के पीछे ::थम वालक की माता की उचित हिफ़ाज़त करनी चाहिये, इस के पीछे बालक के शरीरपर यदि श्वेत चरवी के समान चिकना पदार्थ लगा हुआ होये अथवा न्य कुछ लगा हुआ होवे तो उस को साफ करने के लिये प्रथम बालक के रीरपर तेल मसलना चाहिये तत्पश्चात् साबुन लगाकर गुनगुने ( कुछ गर्म) प'नी से मुलायम हाथ से बालक को स्नान कराके साफ करना चाहिये, परन्तु मान कराते समय इस बात का पूरा खयाल रखना चाहिये कि उस की आंख में तेल साबुन वा पानी न चला जावे, प्रसूति के समय में पास रहने वाली कोई चतुर स्त्री वालक को स्नान करावे और इस के पीछे प्रतिदिन बालक की गाता उस को स्नान करावे । मान कराने के लिये प्रातःकालका समय उत्तम है-इस लिये यथाशक्य प्रातःकाल में ही स्नान करना चाहिये, स्नान कराने से पहिले वालक के थोड़ासा तेल लगाना चाहिये, पीछे मस्तकपर थोड़ासा पानी डाल कर मस्तक को भिगोकर उस को मोना चाहिये तत्पश्चात् शरीरपर साबुन लगा कर कमरतक पानी में उस को खड़ा करना वा विठलाना चाहिये अथवा लोटे से पानी डालकर मुलायम हाथ से उस के तमाम शरीर को धीरे २ मसलकर धोना चाहिये, स्नान के लिये पानी उता ही गर्म लेना चाहिये कि जितनी बालक के शरीर में गर्मी हो ताकी वह उय का सहन कर सके, स्नान के लिये पानी को अधिक गर्म नहीं करना चाहिये, और न अधिक गर्म कर के उस में ठंडा पानी मिलाना चाहिये किन्तु जितने गर्म पानी की आवश्यकता हो उतना ही गर्म कर के पहिले से ही रख लेना चाहिये, और इसी प्रकार से स्नान कराने के लिये सदा करना चाहिये, स्नान कराने में इन बातों का भी खयाल रहना चाहिये कि-शरीर की सन्धिओं आदि में कहीं भी मैल न रहने पाये। माथे पर पानी की धारा डालने से मम्नक टंढा रहता है तथा बुद्धि की वृद्धि होक. प्रकृति अच्छी रहती है, प्रायः मम्नक पर गर्म पानी नहीं डालना चाहिये क्योंकि मम्तक पर गर्म पानी डालने से नेत्रों को हानि पहुँचती है, इस लिये मम्नः पर तो ठंढा पानी ही डालना उत्तम है, हां यदि ठंढा पानी न सुहाये तो थोड़ा गर्म पानी डालना चाहिये, छोटे बालक को स्नान कराने में पांच मिनट का और बड़े बालक को स्नान कराने में दश मिनट का समय लगाना चाहिये, स्नान कराने के पीछे बालक का शरीर बहुत समय तक भीगा हुआ नहीं रखना चाहिये किन्तु स्नान कराने के बाद शीघ्र ही मुलायम हाथ से किसी स्वच्छ वस्त्र से शरीर को शुष्क (सूखा) कर देना चाहिये, शुष्क करते समय बालक की त्वचा (चसड़ी) न घिस ( रगड़) जावे इस का ख्याल रखना चाहिये, शुष्क करने के पीछे भी शरीर को खुला ( उघाड़ा) नहीं रखना चाहिये किन्तु शीघ्र ही बालक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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