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________________ ( ८२ ) जैसे तोता (पोपट) राम राम कहता है परंतु परमार्थ को नहीं समझता है, ऐसा ही इसका हाल है ! क्योंकि पार्वती प्रकृति, प्रत्यय, विभक्ति, लिंग, वचनादि व्याकरण के ज्ञान से प्रायः खाली है । जबकि पार्वती व्याकरण के परमार्थ को नहीं जानती है तो यद्यपि इस अबला के लिखने पर हमको सबला (जबरदस्त) युक्ति की जरूरत नहीं है, तथापि भोले लोगों के दिल में पार्वती का अनुचित लेख पढ़के या सुनके यह निश्चय न हो जावे कि जैनसिद्धांत अनाड़ी के बनाये होवेंगे कि जिनमें व्याकरणादि के नियमों की कोई जरूरत नहीं पड़ती है, तथा वह विचारे पार्वती के लेखको सच्चा मानकर जैनसिद्धांत के बनाने वाले धुरंधर पंडितों का पार्वतीवत् अनादर करने से दुर्गात के भागी न हो जावें ! इस लिये कितनेक जैनसिद्धांतों के पाठमात्र लिख दिखाते हैं कि जिन से पाठकवर्ग को यह विदित होगा कि और और मतके सिद्धांत तो संस्कृतव्याकरण के पढ़ने से ही मार्ग देदेते हैं, परंतु जैनमत के सिद्धांत तो संस्कृत और प्राकृत दोनों ही व्याकरण पढ़ने वालों को मार्ग देते हैं, अन्य को नहीं. और इसीलिये संस्कृत पढ़ना जरूरी है, क्योंकि विना संस्कृत के पढ़े प्राकृत व्याकरण का पढ़ना नहीं हो सकता है, और प्राकृत व्याकरण के बोध विना जैनसिद्धांत का यथार्थ अर्थ मालूम नहीं हो सकता है, यही कारण है कि केवल संस्कृत पढ़े पंडित लोग जैनानेदांत का परमार्थ नहीं पा सकते हैं। तटस्थ-आप व्याकरण संबंधी पाठ वर्णन करें जिस से पार्वती जी का जो अमली निदांत है कि व्याकरण के पढने की कोई खास जरूरत नहीं है, बूंदके बद्दल की तरह उड़जावे, और लोगों को यह दृढ़ निश्चय हो जावे कि इन पाठों के अनुसार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034517
Book TitleJain Bhanu Pratham Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherJaswantrai Jaini
Publication Year1910
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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