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________________ ( ८१ ) जैनशास्त्रानुसार व्याकरण का बोध होना जरूरी है । विवेचक - जिसको स्वयं व्याकरण का बोध नहीं या जिस मतमें प्रायो व्याकरण व्याधिकरण माना जाता है उसके कहने लिखने से क्या बनता है ? हाथी के पीछे कुत्ते भौंका ही करते हैं, परंतु देखो ! पार्वती ने सत्यार्थचंद्रोदय पुस्तक के पृष्ठ २३ से २८ तक संस्कृत व्याकरणादि के विषय में कैसी चालाकी दिखाई है जिसका तात्पर्य यही प्रकट होता है कि व्याकरणादि के पढ़ने की कोई ऐसी जरूरत नहीं है ? अर्थात् मकट पाया जाता है कि ढुंढिये साधू साध्वी प्रायो व्याकरणादि के पढ़े हुए नहीं हैं, और ग्रंथ बनाने का साहस करबैठते हैं जैसाकि पार्वतीने: किया है तो अब ऐसी चालाकी की जावे कि लोगों को यह मालूम न हो कि पार्वती व्याकरण पढ़ी हुई नहीं है या ढुंढिये व्याकरण को नहीं जानते हैं । परंतु अनजान लोगों में ही यह चालाकी काम आवेगी, पंडित लोगों में तो उलटी हांसी ही होवेगी ! यदि इस बात का निश्चय किसी को नहीं आता है तो पार्वती की बनाई पोथी किसी साक्षर निष्पक्षपाती पंडित को दिखाकर अनुभव कर लेवे ! और यदि समग्र पुस्तक देखने दिखाने का अवकाश न होवे तो केवल नमूने के वास्ते पृष्ठ २४ पंक्ति ५-६ " ज्ञानावर्णी कर्म के क्षयोपस्म से " " मोहनी कर्म के क्षयोपस्म" पृष्ठ २५ पंक्ति५ 'अणाश्रवी' 66 सम्बर ” तथा पंक्ति ६ “ ते ( सो ) पुरुष शुद्ध धर्म आख्याती ( कहते हैं ) " पृष्ठ २६ पंक्ति २ " मिध्यातियों " इतना ही दिखा लेवे ! और शुद्ध करावे ॥ पार्वती का प्रायः जितना ज्ञान है, शुकपाठ के समान है, www.umaragyanbhandar.com Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
SR No.034517
Book TitleJain Bhanu Pratham Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhvijay
PublisherJaswantrai Jaini
Publication Year1910
Total Pages124
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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