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________________ ( ५२ ) मास की पूर्णिमा को तीन पैर और आषाढ़ मास की पूर्णिमा को दो पैर जितनी जानु छाया जब हो तत्र पौरसी हो ) यह ६ मास उत्तरायण तथा ६ मास दक्षिणायन (सूर्यचारेपि) सूर्य के चलने में भी अधिकमास गिनती में नहीं यह मंतव्य आपके उपाध्यायों ने व्यर्थ दिखलाया है । क्योंकि ऊपर में श्रावण से पौष तक ६ मास तथा माघ से आषाढ़ तक ६ मास, यह चंद्रसंवत्सर संबंधी १२ मासों की पौरसी की छाया दिखलाई है, इससे अधिकमास गिनती में नहीं, अथवा अधिकमास में सूर्यचार से पौरसी की छाया कमती बेसी न हो । ये दोनों बातें नहीं हो सकती हैं । क्योंकि आषाढ़ मास की पूर्णिमा को दो पैर जानु छाया रहते पौरसी हो आगे और साढ़े सात साढ़े सात दिन रात्रि होने से एक एक अंगुल अधिक छाया रहने से पौरसी होती है तो जैनटिप्पने के अनुसार दूसरा श्राषाढ़ अधिकमास होता है । उस मास में भी अन्य मासों की तरह साढ़े सात साढ़े सात दिनरात्रि होने से एक एक अंगुल छाया अधिक और दूसरे पौष में साढ़े सात साढ़े सात दिन रात्रि होने से एक एक अंगुल छाया कमती होते पौरसी माननी पड़ेगी । इस विषय में आप अन्यथा प्रकार से समाधान नहीं कर सकते हैं । और अधिक मास गिनती में नहीं, यह तो असत्य प्रलाप है । क्योंकि श्रीसूर्यप्रज्ञप्ति चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र की टीका में लिखा है कि कथमधिकमाससंभवो येनाऽभिवर्द्धितसंवत्सर उपजायते कियता वा कालेन संभवतीति उच्यते इह युगं चंद्राऽभिवर्द्धितरूपपंचसंवत्सरात्मकं सूर्यसंवत्सराऽपेक्षया परिभाव्यमानमऽन्युनाऽतिरिक्तानि पंच वर्षाणि भवंति सूर्यमासश्च सार्वत्रिंश Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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