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________________ शास्त्रविरुद्ध अपने गच्छकदाग्रह से प्रत्यक्ष असत्य प्रलापरूप है। अस्तु चंद्रवर्ष में अधिकमास नहीं होने से नव कल्प विहार कहलाता है, तथापि आपके उक्त उपाध्यायों ने लिखा है कि नवकल्प विहारादि में अधिकमास गिनती में नहीं, यह प्रत्यक्ष अपना असत्य मंतव्य दिखलाया है । क्योंकि-. काउण मासकप्पं, तत्थेव ठियाण जइ वासं। मग्गसिरे सालंबणाणं, छम्मासिनो जेठोग्गहो होइति ॥१॥ यह नियुक्तिकार श्रीभद्रबाहुस्वामि ने जैनटिप्पने के अनुसार दूसरा आषाढ़ अधिक मासकल्प को गिनती में ले के मगसिर मासकल्प पर्यंत ६ मास ज्येष्ठ कालावग्रह से उसी एक क्षेत्र में सालंबी स्थविरकल्पि साधुओं को रहने की आज्ञा लिखी है । और शेष रहे ७ महीने के सात मासकल्प होते हैं। यह उपर्युक्त सब १३ मास उस अभिवर्द्धित वर्ष में होते हैं तो अधिकमास गिनती में नहीं, इस प्रत्यक्ष झूठे कदाग्रह को कौन बुद्धिमान् सत्य मानेगा ? आपके उक्त उपाध्यायों ने लिखा है कि--"आषाढ़े मासे दुपया इत्यादि सूर्यचारेऽपि " याने आषाढ़मास की पूर्णिमा को (दुपया) जानु संबंधी छाया दो पैर (दो पग) माप जितनी जब हो तब पौरसी होती है (आगे ६ मास तक ७॥ या तिथिक्षय होने से ७ दिन रात्रि वीतने से । एक एक अंगुल छाया अधिक होने पर पौरसी होती है, इसी लिये आश्विनमास की पूर्णिमा को तीन पैर और पौषमास की पूर्णिमा को चार पैर जानु छाया होने से पौरसी हो पीछे ६ मास तक ७॥ या तिथिक्षय होने से ७ दिनरात्रि करके एक एक अंगुल छाया कमती होने पर पौरसी होती है, वास्ते चैत्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034509
Book TitleHarsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKesharmuni Gani
PublisherBuddhisagarmuni
Publication Year
Total Pages87
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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