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इसी कारण जैनाचार्यों ने भी गोबर को लौकिक शुद्धि में स्थान दिया है । परन्तु चौके के लिए नहीं।
सचित्त को प्रापुक करने की विधि
आग से गर्म किया हुआ जल, दूध आदि द्रव्य, नमक, खटाई से मिला हुप्रा यन्त्र से छिन्न भिन्न किया हुआ हरित काय प्रासुक है। जल को प्रासुक करने के लिये गर्म करने के बाद हरड़, प्रांवला, लोग या तिक्त द्रव्यों को जल प्रमाण से ६० वें भाग मिलाना चाहिये । ऐसा प्रासुक जल मुनियों के ग्रहण करने योग्य होता है।
भोजन के पदार्थों की मर्यादा ___जैनधर्म के प्राचार शास्त्र में तीन ऋतुएं मानी हैं। प्रत्येक ऋतु का प्रारम्भ अष्टाह्निका की पूर्णिमा से होता है । वह चार मास तक रहता है । यही पूर्वाचार्यों का सिद्धान्त है। १ शीत ऋतु-अगहन ( मार्गशार्ष ) वदी १ से फागुन सुदी १५ तक। २ ग्रीष्म ऋतु-चैत वदी १ से आषाढ़ शुक्ला १५ तक । ३ वर्षा ऋतु-श्रावण वदी १ से कार्तिक शुक्ला १५ तक ।
इन ऋतुप्रों के अनुसार प्राटा की भिन्न २ मर्यादा होती है । दूध की मर्यादा-प्रसव के बाद भैंस का १५ दिन, गाय का १० दिन, बकरी का दिन बाद शुद्ध होता हैं । दूध दुहने के २ घड़ी के भीतर छानकर गर्म कर लना चाहिये । अन्यथा अभक्ष हो जाता है। गर्म किये हुए दूध की मर्यादा ४ पहर है। नमक की मर्यादा पीसने के बाद ४८ मिनट तक है।
आटा, वेसन, मसाला तथा पिसी हुई चीजोंकी मर्याया शीत ऋतु में • दिन है वूरा की मर्यादा १ माह तथा ग्रीष्म ऋतु में ५ दिन व वूरा ५ दिन व वर्षा ऋतु में पिसी चीजों की मर्यादा
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