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________________ जिसमें आपने भगवान जिनेन्द्र की पूजन करने की पूर्ण विधि लिखी है वह पुस्तक भी धार्मिक सज्जनों को उपयोगी है । प्रस्तुत पुस्तक "श्री दि० जैन मुनि स्वरूप तथा आहार दान विधि" भी धार्मिक भावना की द्योतक है तथा सुगुरु भक्ति भावना युक्त है । हम श्री १००८ जिनेन्द्रदेव से प्रार्थना करते हैं कि श्री वैद्य जी को सदैव सद्बुद्धि प्राप्त होती रहे, जिससे वह धर्म मार्ग में अग्रसर होते रहें । साथ ही हमारी दिगम्बर जैन समाज के गृही वर्ग से भी विशेष २ प्रेरणा है कि वह अपने पदस्थ योग्य जो धार्मिक कार्य हैं, उन्हें प्रमाद रहित नित्य करते रहें । देव पूजा, सुगुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप और दान यह प्रत्येक गृहस्थ को नित्य अनिवार्य करने चाहिये । 1 दोहा - पूर्व दान फल पुण्य से, हुये आज धनवान | आगे भी वंभव मिले, अतः दीजिये दान | दान दिये धन ना घटे, बढ़े कूप जल जे म । जग में फैले कीर्ति बहु, घर में नित रहे क्षेम || विनय, भक्ति युत दान दो, नित सत्पात्र निहार । दीन दुखी लखि दीजिये, दयाभाव मन धार ॥ धर्म, जाति, श्री' देश हित, लगे वही धन सार । विना दान धनवान पर भगवत् डारौ छार ॥ सुगुरु चरण सेवक - भगवत्स्वरूप जैन "भगवत्" सहायक मन्त्री श्री दि० जैन अतिशय क्षेत्र ऋषभनगर [मरसलगंज ] मु०पो० फरिहा (जिला मैनपुरी) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034500
Book TitleDigambar Jain Muni Swarup Tatha Aahardan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJiyalal Jain
PublisherJiyalal Jain
Publication Year1965
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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