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________________ आज कल जिंतनी चिन्ता लौकिक शासन व्यवस्था के दृढ़ करने में है, उसका शतांश भी धार्मिक शासन व्यवस्था के लिए नहीं है। हमको स्मरण रखना चाहिए कि इस सुधार रूपी रथ के लौकिक शासन रूपी चक्र के समान दूसरा धार्मिक शासन भी एक चक्र ही है। जैसे एक चक्र से रथ नहीं चल सकता तद्वत् केवल लौकिक शासन व्यवस्था से ही सुधार नहीं हो सकता। राजकीय सत्तास्थित महापुरुषों को यह कदापि न समझ बैठना चाहिए कि हमारी शासन व्यवस्था ही संसार की अव्यवस्था को रोक रही है। अप्रत्यक्षतः धार्मिक भावना धार्मिक शास्त्र और धार्मिक गुरु जितनी अव्यवस्था को मिटा रहे हैं राजकीय सत्ता उतनी नहीं । चोरी को ही लीजिए। यह धार्मिक भावना कि चोरी करना पाप है और इसका फल नरकादि घोर यातना है तथा इसका फल पुनर्जन्म में भी भोगना पड़ेगा न होतो तो आज का राज शासन असंख्य पुलिस के योग से भी चोर प्रवाह को नहीं रोक सकता था। कुछ धार्मिक भावना में शिथिलता आई है कि चोरों की बन आई है अपराध बढ़ रहे हैं। ज्यों-ज्यों पुलिस में वृद्धि की जा रही है त्यों-त्यों चोर डाकू भी दिन प्रति दिन बढ़ते चले जा रहे हैं। वह कैसी चिकित्सा कि जिससे रोग बढ़ता हो। नये विधान में कुछ धर्म की अवहेलना की गई बतलाते हैं। बिना उसके लागू हुए भी इतना प्रभाव स्त्री-पुरुष के परस्पर सम्बन्ध में पड़ा है कि अनेक प्रार्थना पत्र न्यायाधीशों के समीप इस विषय के ये हैं कि प्रार्थियों को इस विवाह बन्धन से मुक्त कर दिया जावे। बिना धर्म के भय से प्रत्येक पुरुष अपराधी बन जायगा, काश्चन और कामिनी को ही अपना लक्ष्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034496
Book TitleDharm Shasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghunandan Sharma
PublisherRaghunandan Sharma
Publication Year
Total Pages16
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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