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________________ [प्राक्कथन शिवाजीके आक्रमण समय केवल अंग्रेज और डजोंने नगरकी रक्षाके लिये अपना हाथ उठाया । उसके पांच वर्ष पश्चात इंगलेण्ड नरेश चार्ल्स प्रथमने दहेजमें मिला हुआ वर्तमान मुम्बई अंग्रेज बणिकसंघको सन १६६६ में दश पाउण्ड वार्षिक देनेके शर्तपर दे दिया। अंग्रेज बरिणक संघको अपने राजासे वर्तमान मुम्बई मिलने पश्चात् दूसरे वर्ष शिवाजीने पुनः सूरतपर आक्रमण कर तीन दिवस पर्यन्त लुटा । उससे सूरतका व्यापार सदाके लिये नष्ट हो गया । सन १६८६ में अंग्रेजोंका मुठभेड़ मुगल बादशाह औरंगजेबके साथ हुआ । सन १६६० में चा कके हुरली किनारेके गोविंदपुर, सुतानटी और कालीघाट नामक तीन प्राम ११०० रुपियामें खरीद कर वर्तमान कलकत्ता नगरका सूत्रपात किया एवं कलकत्तका प्रसिद्ध दुर्ग फोर्ट विलियमका निर्माण किया और इसी वर्ष लाट प्रदेशके सूरत नगरसे अंग्रेज बणिक संघने हटकर अपना केन्द्र मुम्बईको बनाया । इस प्रकार ब्रिटिश संघका भारतमें मुम्बई, मद्रास और कलकत्ता प्रधान स्थान हुआ। सूक्ष्म रूपसे ब्रिटिश वणिक जातिका उत्कर्ष और ब्रिटिश वणिक संघके जन्म तथा विकासका परिचय देने पश्चात हम केवल अपने विवेचनको लाट देशके साथ संबंध रखनेवाली परिस्थितिके साथ ही परिमित करेंगे। क्योंकि अन्यान्य बातोंसे हमारा संबंध नही हैं । लाट देशके साथ मुम्बई वाली वणिक संघकी शाखाका संबंध है । इस शाखाने मुम्बईको केन्द्र बना अपना व्यापार प्रचलित रखा । परन्तु देशकी राज्यनैतिक हलचलसे अपनेको पूर्ण रूपेण अक्षुण्ण रखा । परन्तु सन १७७२ में वणिक संघने लाटको राज्यनैतिक हलचलमें भाग लिया। दामाजी गायकवाड़ की मृत्यु पश्चात उत्तराधिकार लिये जब उसके पुत्रोंमें विवाद उपस्थित हुातो उसके पुत्र फतेहसिंहने संघसे सहाय माँगा और उसने उसके साथ आक्रमण प्रत्याकरणमें परस्पर सहयोगात्मक संधि की और उसके अनुसार भरुचके नवाबसे भरुच छीन उसे दे दिया। पर भरुच इलाकेका आधा भाग अपने पास रखा । इसके अनन्तर संघ देशके राज्यनैतिक मंच पर खेलने लगा। इसी वर्ष १७७२ में पेशवा माधवरावकी मृत्यु पश्चात उसका छोटाभाई पेशवा बना पन्तु थोड़े दिनों बाद १७७३ में उसे सिपाहियोंने विद्रोह कर राघोबा (रघुनाथराव ) के सामनेही से मार डाला । अनन्तर राघोबा पेशवा बन बैठा । परन्तु तीन महीना बाद नारायणरावकी स्त्री पुत्र प्रसव किया। वह जब ४० दिनका हुआ तो राजारामने उसे पेशवा बनाया। इसपर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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