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________________ [ चौलुक्य चंद्रिका ७८ यहां तक कि पोरचुगीज़ों को पोप महाशय नवीन दुनिया अमेरिका आदिका न्याय संगत स्वामी घोषित कर चुके थे । परन्तु अंग्रेजोंके भाग्य के बाल रविका उदय हो चुका था। उसकी कीरणें शीघ्रता से विकसित हो रहीं थीं । वे सन १५८८ में स्पेनियाई " इन्वीन्सिवल आमा" का नाश कर चुके थे । अंग्रेज नाबिक अमेरिका में पहुंच चुके थे संसारकी परिक्रमा कर चुके थे । अतः इन दोनों जातियोंके विरोध जन्य हानि रूप बाधासे और भी उत्साहित हो गये । एवं सन १६११ में बंगालकी खाड़ी के पश्चिम तटवर्ती मछली पट्टममें केन्द्र स्थापित किया । दूसरे वर्ष सन १६१२ में अरब समुद्रके पश्चिम तटवर्ती लाट वसुन्धरा के सूरत नगर में कोठी खोली । और सावली नामक स्थानमें पोरचुगीज का मान मर्दन किया । और अपना आतंक अन्यान्य नाविकों तथा देशियों पर जमाया। अंग्रेज वपिकोंका मार्ग प्रशस्त करनेके विचारसे तत्कालीन इंगलेण्ड नरेश जेम्स प्रथमने सन १६९५ में भारत सम्राट जहांगीरकी सेवा में अपने दूत सर थोमस रॉ को भेजा । वह इंगलेण्डसे चल कर सूरत उतरा और वहांसे बुरहानपूर होता हुआ सन १६१६ की जनवरी में बादशाहकी सेवा में अजमेर नगरमें उपस्थित हुआ । और बादशाहके लश्करके साथ मांडु, बुरहानपुर और अहमदाबाद आदि स्थानों में लगभग दो वर्ष पर्यन्त फिरता रहा । परन्तु जो व्यापारिक सुगमता इंगलेण्ड नरेशने मांगी थी उसको असंगत और अनुचित बताकर बादशाहने अस्वीकार कर दिया । तब वह सन १६१८ मे सूरत वापस आ गया । और सन १६१६ स्वदेश लौट गया। परन्तु हतोत्साह नहीं हुए। लड़ते झड़ते अपने प्रतिद्वन्दित्र डच आदिसे उनके अधिकृत भूभागको छीनते झपटते अपना व्यापार चालू रक्खा । सन १६२५ में बंगाल में प्रवेश कर गाव केन्द्र स्थापित किया । सन १६३६ में फ्रान्सीसी डे ने चन्द्रगिरीके राजासे वर्तमान मद्रास नगर और सेन्ट ज्योर्ज दुर्गका पट्टा प्राप्त किया। सन १६५० में बंगालके मुगल सूबेदारसे बंगालमें व्यापार करनेका परवाना प्राप्त कर हुगली और कासीम बजारमें केन्द्र स्थापित किया । इंगलेण्ड नरेश चार्ल्स प्रथम सन १६६० में गद्दीपर बैठा और सन १६६१ में पोरचुगल राज्य कुमारी केथेराइनसे विवाह किया । दहेज में उसे वर्तमान बम्बई द्वीप मिला । इस घटना के चार वर्ष बाद सन १६६४ में महाराजा शिवाजीने सूरत नगरको लूटा । उस समय सूरत नगरमें अंग्रेज, फ्रेंच, डच आदि अन्यान्य यूरोपिअनोंका व्यापारी केन्द्र था । परन्तु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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