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________________ [प्राक्कथन साधारणने अवाज उठाई। और वह पकड़कर आनन्दरावके सामने लाया गया। आनन्दरावने उसे एक किलामें बन्द रखा। इस घटना के थोड़े दिनों बाद कड़ीके सूबा मल्हाररावने विद्रोह किया। परन्तु आनन्दरावने उसके साथ सन्धि कर ली। उक्त संधिके अनुसार उसकी कड़ीकी जागीर निश्चित हो गई। इस संधिको थोड़े दिनों बाद मल्हाररावने तोड़ दिया और दोनोंके मध्य युद्ध छिड़ गया। इस विग्रहमें आनन्दरावकी बहिन और कुछ सेनापति तथा कान्होजी आदि मल्हारराव के साथ थे । बागियोंने अंग्रेजोंसे सहायकी प्रार्थना की और सहायताके उपलक्षमें सूरतकी चौथ और चौरासी परगना देनेका वादा किया। आनन्दराव भी अंग्रेजोंसे सहायकी प्रार्थना कर रहा था। अन्तमें अंग्रेजोंने आनन्दरावको सहाय देना स्वीकार किया। और उनके इस सहाय प्रदानका कारण यह था कि उन्हें शंका थी कि यदि वे सहाय न देंगे तो कदाचित सिन्धिया आनन्दरावकी मददमें आ जावेगा। अतः अंग्रेजोंने मेजर वॉकरकी अध्यक्षतामें फौज भेजी। और वे बरोदा नगरमें प्रवेश किये। अन्तमें आनन्दरावने विक्रम १८५८ में सन्धि की जिसके अनन्तर वाकरको सूरत और चौरासी की चौथ आदि वसूल करनेका अधिकार मिला। मेजर वॉकरने आनन्दरावकी खूब मदद की। आनन्दरावने अंग्रेजोंके साथ दूसरी सन्धि विक्रम १८६१ में की। जिसके अनुसार अंग्रेजोंको ११७०००० वार्षिक आयकी भूमि आनन्दरावसे मिली। अन्तमें विक्रम १८७१ में पेशवा और गायकवाड़का संबंध विच्छेद हुआ। और विक्रम १८७३ की सन्धिकेअनुसार पेशवाका आधिपत्य अधिकार अंग्रेजोंको मिला और बरोदा अंग्रेजोंका आधीन माण्डलिक बना। लाट गुजरातमें अंग्रेज। हमारे विवेचनीय इतिहास और देशके साथ अंग्रेज जातिका संबंध ओतप्रोत हो रहा है। इतनाही नहीं हमारे उत्तर कालके इतिहास कालमें तो अंग्रेज जाति सार्वभौम पद प्राप्त किये है। हम अपने उत्तर कालके इतिहास विवेचनमें अनेक बार अंग्रेजोंका उल्लेख कर चुके हैं। अतः अंग्रेज जातिके उत्कर्ष और सार्वभौम सत्ता विकासका विवेचन करते हैं। अंग्रेज जातिके देशका नाम " ग्रेट ब्रिटेन” बृहत ब्रिटेन हैं। और उसका अवस्थान यूरोप महाद्वीप के पश्चिम समुद्रके मध्य अवस्थित है। ग्रेट ब्रिटनका आकार प्रकार हमारे देशक एक छोटेसे प्रदेशके समान और जन संख्या भी उसी प्रकार नगण्य है। क्योंकि हमारे देशकी जन संख्या उससे लगभग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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