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________________ चौलुक्य चंद्रिका] ४२ है। और लाटके कुछ भूभागपर पाटनवालोंका अधिकार हो जाता है। जिसे वारपका पुत्र अमिराज पाटनवालों को भगा कर स्वाधीन करता है। ___इतनाही नहीं अमिराजने अपने राजके सीमावर्ती अन्यराजोंसे वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर अपने अधिकारको स्थायी बनानेका सूत्रपात किया था । इसने अपनी कन्याका विवाह चांदोदके यादव वंशी तेसुकके साथ किया था । जिसका मातृक संबंध स्थानकके शिल्हारोंके साथ था। कीर्तिराज इस वंशका सर्व प्रथम स्वतंत्र राजा है। क्योंकि इसने वातापिके चौलुक्योंकी आधीनता यूपकोभी अपने कन्धेसे उठा फेंका था। कीर्तिराजको स्वतंत्र बननेमें अपने फुफेरेभाई चांदोदके यादव राजा भिल्लभ और उसके निकटतम संबंधी स्थानकके शिल्हारोंसे सहाय मिला था। कीर्तिराजके पुत्र वत्सराजके संबंधों में विशेष शान नहीं है। तथापि हम इतना अवश्य जानते हैं कि उसने नर्मदा-समुद्र संगमके समीपवर्ती सोमनाथके मन्दिरमें रत्नजडित सुवर्ण छत्र चढ़ाया था और अनाथोंके लिये एक सत्र स्थापित किया था। वत्सराजके पुत्र कीर्तिराजने अगस्त तीर्थमें स्नान कर एरथान नामक प्रामदान दिया था। कीर्तिराजके अन्त समय पाटनके करणने लाटके उत्तरीय भाग वाटपद्रक और विश्वामित्री नदीके समीपवर्ती भूभागपर और नागसारिका विषयपर अधिकार किया था। किन्तु कीर्तिराजके भाई जगत्पाल और पुत्र तथा उत्तराधिकारी त्रिविक्रमपाल तथा भतीजा पद्मपालने पाटनवालोंको भगा, अपने खोये हुए भूभागको पुनः स्वाधीन किया। त्रिविक्रमपालको पाटनवालोंपर विजय पानेके पश्चात्भी सुखकी नींद लेनेका अवसर नहीं प्राप्त हुआ, क्योंकि हम देखते हैं कि उसको अपने विजयकाल शक ELE के केवल तीन वर्ष पश्चात् शक १००२-३ में वातापि युवराज चौलुक्य चूडामणि जयसिंहकी रणक्रीडाका कंदुक बनना पड़ा था। इतनाही नहीं वह जयसिंहके शौर्यसे इतना संतप्त होगया था कि उसे सदा सशंक रहना पड़ता था। त्रिविक्रमपालके पश्चात् इस वंशका विशेष परिचय नहीं मिलता। परन्तु सिद्धराज जयसिंहके समय नंदीपुरके चौलुक्योंके अस्तित्वका भावान्तर रूपसे परिचय मिलता है। क्योंकि पाटनपति सिद्धराजके राज्यारोहणके पश्चात् उसके चचा और प्रधान सेनापति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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