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________________ चौलुक्य चंद्रिका ] कृ ष्ण महादेव T रामचंद्र | शंकर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ३८ दक्षिणापथके चौलुक्योंके ऐतिहासिके लेख " चौलुक्य चंद्रिका " वातापि खंड प्राक्कथनमें यादवों के सार्वभौम साम्राज्य के विस्तारका विचार कर चुके हैं। और यह भी बता चुके हैं कि उन्होंने कुछ दिनोंके लिये उत्तर कोकणसे लेकर मैसूर पर्यंत अपना आधिपत्य स्थापित किया था । अतः यहांपर उनके लाट गुर्जर और अन्यान्य राज्योपर आक्रमणादिका पुनः उल्लेख करना पिष्टपेषण मान केवल इतनाही कहते हैं कि इन यादवोंके राज्य कवि और शासन लेखक गण तिलका ताड़ बनाने और बिना शिर पैरकी प्रशंसाका पुल बांधनेमें दूसरे किसीसे कणिका मात्रभी कम न थे। यदि इनके अलंकार आडम्बरको निकाल बाहर करें और अन्यान्य राज्यवंशोंके इतिहासके साथ तारतम्य संमेलन करें तो अनायासही सत्य ऐतिहासिक घटनाओं को प्राप्त कर सकते हैं। महादेव के पूर्व उसके दादा सिंघनने अपने वंशके अधिकारका विस्तार किया । यहां तक कि उसने एक बहुत बड़ी सेना लेकर कोकण और लाटपतिको पराभूत कर पाटन के चौलुक्योंपर आक्रमण करनेके लिये अग्रसर हुआ था । इसके गुजरात आक्रमणका उल्लेख कीर्ति कौमुदीमें निम्न प्रकारसे किया गया है। " कर्नाटपतिके आक्रमणका संवाद पा गुजरातकी प्रजा ( गुजरात नामसे पाटनवाले चौलुक्योंका संबोध किया गया है) अत्यंत भयभीत हुई । लवणप्रसाद सेना लेकर आक्रमणकारी सेनाका अवरोध करनेके लिये आगे बढ़ा। लवणकी सेना बहुत थोड़ी थी। गुजरातकी सेना यद्यपि लड़ाकू और पीछे हटनेवाली न थी, तथापि शत्रुकी विशाल सेनाके सामने उसके ( लवण ) बिजयी होने में गुजरातकी प्रजाको सन्देह था । भावी भयंकर और दुःखद परिणामके डर से कोई भी नवीन मकान नहीं बनाता था। सबने घरमें अन्न संग्रह करना छोड़ दिया था । सेना के उत्पात के डर से प्रजा ग्राम छोड़कर भाग रही थी। इसी अवसरमें उत्तरसे मारवाड़वालोंने www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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