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________________ चौलुक्य चंद्रिका ] ... २-अनेक राजाओं के शासन पत्रोंमें दूतकके नामके साथ “ राजपुत्र" विशेषण देखनेम आता है अतः हम कह सकते हैं कि “राजपुत्र" शदका प्रयोग " राज वंशोद्भव" भाव ज्ञापन करनेके लिये किया जाता है। कथित “राजपुत्र" शब्दका विशेष प्रयोगही उत्तरभावी " राजपुत्र" शद्वका जनक है। ___.. ३-यदि उनकी संभावनाके अनुसार दन्तिवर्माकी मृत्यु पिताकी जीवित अवस्थामेहीं हो गई थी; और उसका द्वितीय पुत्र (कर्कराज) उसकी वृद्धावस्थामें हुआ था जिसके अल्प वयस्क होने के कारण गोविंद गद्दीपर बैठा। तो ऐसी दशामें हमें अकाल वर्षका जन्म अपने चचा ध्रुवके जन्मसे पूर्व मानना पड़ेगा। और ऐसा माननेपर वह अल्प वयस्क क्योंकर होसकता है। पुनश्च कर्कराजके ज्येष्ठ पुत्र होनेके कारण वह न्यायोचित उत्तराधिकारी था। वैसी दशामें गोविंद और ध्रुवको राज्य क्योंकर मिल सकता है। इन्हीं कारणोंको लक्षकर हमने यह निश्चय किया हैकि दन्तिवर्मा न तो कर्क राजका ज्येष्ठ पुत्र और न उसके शासन पत्रका दूतक था। वरन वह उसका छोटा पुत्र और ध्रुवराजका अनुज था। अब यदि हम दन्तिदुर्गका जन्म पिताकी मृत्युके कुछ पूर्व मान लेवें तो वैसी दशामें उसका जन्म हमें ७४७-४७ में मानना पड़ेगा। अतः शक ८१० में अपना शासन पत्र जारी करते समय उसकी आयु ६२ वर्षकी ठहरती है। जबके पाश्चात्य विद्वान, श्री वल्लभ अकाल वर्षका राज्य काल ७३६-७९९ वर्ष ६३ विना मीन मेष मानते हैं। तो वैसी दशामें शुमतुङ्ग अकाल वर्षकी आयु ६३ वर्ष माननेमें आनाकानी करना सरासर मनमानी घरजानी के बराबर है। ... अकाल वर्षके साथही लाट गुजरातके राष्ट्रकूटोंके प्रत्यक्ष संबंधकी समाप्ति होती है। परन्तु यह समाप्ति ठीक किस समय हुई इसका परिचय नहीं मिलता । किन्तु यह निश्चित है कि शक ८१० और ८३६ के मध्य किसी समय प्रधान शाखावालोंने लाट गुजरातकी शाखाका अन्त कर लाट-गुजरातको स्वाधीन कर लिया था। राष्ट्रकूटों का अप्रत्यक्ष सम्बन्ध - दक्षिणा पथ मान्यखेटके राष्ट्रकूटोंका द्वितीयवार अप्रत्यक्ष संबंध शक ८१० के पश्चात् कृष्ण अकाल वर्षसे स्थापित किया और यह अप्रत्यक्ष संबंध शक ८६३ पर्यंत स्थित प्रतीत होता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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