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________________ १७१ [लाट बासुदेवपुरखण्ड कृत कर हम प्रशस्ति कथित वासुदेवबुर का रुपान्तर निःशंक हो कर नवानगर-वांसदा को घोषित करते हैं। वांसदा को प्रशस्ति कथित बासुदेवपुर का रुपान्तर होने के संबन्ध में पूर्व उद्भावित आशांकाओं का आपादतः मूलोच्छेद करने और वासुदेवपुर का अवस्थान वर्तमान वांसदा नगर से दो मील पर अवस्थित नवानगर वांसदा के समीप पुरातन नगर का अवस्थान सिद्ध करने के पश्चात प्रशस्ति कथित अन्यान्य स्थानों के अवस्थान आदि का विचार करते है । प्रशस्ति के श्लोक ३१ और ३२ के पूर्वार्ध में कर्मणेय मधुपुर और पार्वत्य नामक स्थानों का उल्लेख है। प्रशस्ति से प्रगट होता है कि कथित तीनों स्थान विषय अर्थात प्रगणा थे । उनमें से रामदेव ने अपने दूसरे पुत्र महादेव को मधुपुर तीसरे पुत्र कृष्ण का कार्मणेय और चौथे पुत्र कीर्तिराज को पार्बत्य दिया था । एवं ज्येष्ठ पुत्र वसन्तपुत्र के पुत्र वीरपुत्र को राज्य दिया था। इस प्रकार अपने राज्य का प्रबन्ध करने पश्चात वह स्वर्गवासी हुमा। एवं उसका स्वर्गवास वासुदेवपुर में हुआ था। कथित तीनों विषयों में से कार्मणेय को हम तापी तटवर्ती वर्तमान कामरेज जो बड़ोद राज्यके नवसारी मण्डलका एक तालुका और सुरतसे ११ मीलकी दूरी पर है मानते हैं । इस काम रेज का कार्मणेय नाम से वर्तमान प्रशस्ति से लगभग सातसौ वर्ष पूर्व भाबी लाट नवसारिका के चौलुक्य राज जयसिंह धाराश्रय के पुत्र शिलादित्य के शासन पत्र में किया है। एवं पार्बत्य विषय का विचार हम पूर्वोधृत विजयसिंह के शासन पत्र के विवेचन में कर चुके है । और पार्वत्य को वरोदा राज्य के सोननगढ़ तालुका के पारघट नामक स्थान सिद्ध कर चुके हैं । अव रहा मधुपुर इसके बारे में हम कह सकते हैं कि यह वर्तमान महुआ नामक नगर का नामान्तर है। वर्तमान महुआ नगर के वीच जैनिओं का विघ्नेश्वर नामक मन्दिर है । उक्त मन्दिर में चार प्रशस्तिया मन्दिर के वासर की लकड़िओं में खुदी हैं । इन लेखों में महुआ का नाम मधुकरपुर लिखा गया हैं । मधुकरपुर का प्रयाग वाचक मधुपुर है। संस्कृत साहित्य के महारथी कविता में स्थान के अनुसार मधुकरपुर या मधुपुर का प्रयोग करते हुए पाये जाते हैं। पुनश्व मधुकपुर और मधुपुर दोनों का अर्थ एक है । इनका प्रयोग भी साधारणतया एकके स्थान में दूसरे का अर्थ अववोधनार्थ किया जाता है। प्रशस्ति कथित समस्त स्थान और नगरों का अबस्थानादि विवेचन करने के पश्चात हम वीरदेव के पुत्र कृष्ण देव कादेश निकाला पश्चात क्या हुआ और वसन्तपुर अपहरण करने वाला कौन था इन दो शेषभूत विषयों के विवेचन मे प्रवृत्त होते है। और इनमें से कृष्ण देवका क्या हुआ के विवेचन को सर्व प्रथम हस्तगत करते हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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