SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चालुक्य चन्द्रिका १७० खैर चाहे जो हों इवा कावेरी और ताप्ती के मध्य में बहने वाली कोई नदी होनी चाहिए । सूरत गरि के पर्यालोचन से प्रगट होता है कि तापी से दक्षिण में बहने वाली एक शिवा नामक नदी है। शिवा का रूपान्तर इवा अनायासही हो सकता है । इस रूपान्तर के लिए न तो परिवर्तन नीतिका आश्रय लेना पड़ता है और न खींच खाच तोड़ मरोड़ करना पडता है। संभव है कि प्रशस्ति लेखक के हस्त दोष से शिवा का सरकार छुट गया हो और उसके स्थान में इवा बन गया । इस कारण हम निःशंक हो कह सकते हैं कि कर्तमान शिवा ही प्रशस्ति कथित इवा है । अब चाहे हम शिवा को इवा माने या पूर्णा को इवा माने या गझेटिअर के कथनानुसार अम्बिका को इवा माने हमारी न तो कोई हानी है और न हमें कुछ लाभ है । क्योकि हमारा संबन्ध संप्रति शिवा और इवा से नहीं है। हमें तो करवेणी और कलवेणी - कलवेनी और करवेनी से अधिक प्रेम है और हम अपनी कलवेणी के मुस्ताक होने के कारण सारे शटोंको छोड कर आगे बढ़ते हैं । 1 प्रशस्ति की करवेण, मेरुतुगकी कलवेणी या करवेणी और गमेटिश्वर की कालवेणी का नामान्तर हमें कावेरी मानने में करिणका मात्र भी संदेह नहीं है । क्योंकि उत्तर कोकण और विभाजित करने वाली वर्तमान कावेरी पुरातन करवेणी या कलवेणी से अभिन्न है । वसन्तपुर राज प्रशस्ति कथित कुलसेनी या कलसेनी और नाशिक गुफा प्रशस्ति कथित करत्रेणी और मेरुतुन्ग तथा गेझेटिअर ऋथित कलवेणी में बहुत ही नाम साम्यता है । संभव है कि मेरुतुग की प्रषन्ध चिंतामणि की प्रतिलिपि करने वालों के हस्त दोष से कुलसेनी वा कलसेनी का कलवेणी अथवा कलवीणी बन गया हो । या राज प्रशस्ति की लिपि करने वाले के हस्त दोष से कलवेणी का कुलसनी बन गया हो। चाहे जो हो प्रशस्ति की कुलसनी और मेरुतुन्ग की कलवीणी और गझेटिअर की कलवेणी अभिन्न है । प्रशस्ति कथित कलसेनी को वर्तमान कावेरी का नामान्तर सिद्ध करनेके साथही प्रशस्ति कथित वासुदेवपुर का अवस्थान कावेरी और अम्बीका के मध्य बेणुकुन्ज के बीच अपने आप सिद्ध हो जाता है । वर्तमान वांसदा और नवानगर वांसदा से अम्बीका की दूरी लगभग ५ मील है । अब यदि नवानगर वांसदा से पुरातन वांसदा को लगभग मील देढ़ मील की दूरी पर मान लेवे और ऐसा मानना नदी के दोनों कुलों पर भग्न अवशेषों को दृष्टिकोण में रख का असंगत भी नहीं है तो कहना पडेगा कि नगर के अन्तिमछोर से कुलसनी और अम्बक दोनों की दूरी समान होगी । अतः प्रशस्ति कार का वासुदेवपुर को कथित दोनों नदियों के मध्य में अवस्थित लिखना पूर्ण रुपेण युक्तिजुवत और तथ्यात्मक है । कथित वित्र कोलती - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy