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________________ [लाट वासुदेवपुरखण्ड __ मंगलपुरी का परिचय पाना असम्भव है। अतएव इस प्रयास का छोड़ लेख कथित धवल नगरी विचार करते हैं । लेखले प्रगट होता है कि कुम्भदेव ने धक्ल नगरी में आदि देव की प्रतिमा स्थापित की थी । परन्तु प्रस्तुत लेख और उक्त दोनों मूर्तियां जिस स्थान में पाई गई हैं उसका नाम बारोलिया है। हां उसके समीप बहने वाली नदी को धवलधरा कहते हैं धवलधरा का शाब्दिक अर्थ होता है धवल के पास। अतः इस स्थान के सभीप धवलनगरी का होना प्रगट होता है। चारोलिया ग्राम के चारों तरफ मिलों आप चाहे जिस खेत अथवा टीले को खादें मापको सवत्र पुरातन जनपद का अवशेष मिलेगा। यहां पर वर्षाऋतु में पुरातन सिक्के मिलते हैं। खादने पर बड़ी २ ईटें और मिट्टी के वर्तन दृष्टिगोचर होते हैं । यहां की जनता में प्रसिद्ध है कि यहां पर धवल नामक बहुत बड़ा नगर था जो किसी राजा की राज्यधानी थी । हमारी समझ धवल नगर का अवशेष यही स्थान है। . धवलनगरी के अवस्थान का विचार करने के बाद अब हम मादि देव के सम्बन्ध विचार करते हैं । प्रस्तुत लेख के आदि देव से अभिप्राय चौलुक्यों के कुलदेव वाराह या आदि वाराह से है। एवं आदिदेव विष्णु का भी नाम है । किन्तु मूर्ति के आकार प्रकार से वह विष्णुकी मूर्ति नहीं कही जा सकती । हां इस प्रकार की वाराहकी मूर्ति सह्याद्रि प्रदेश में अनेक स्थानों में हमें देखने को मिली है। एवं नासिकसे मूलगंगा जाते समय अमृतकुण्ड के समीप एक मूर्ति ठीक वारोलिया के मर्ति के समान है। अतः हम निःशंक हो कह सकते हैं कि लेख का भादि देव वाराह का द्योतक है। . . वंशसंस्थापक कृष्ण के बाद उसके वंशजों के विरुद घटते गये हैं। वंश स्थापक कृष्णराजके विरुद "रम भट्टारक परमेश्वर महाराजाधिराज' हैं । उसके पुत्र उदयराज के भी उसके समान ही है। परन्तु पौत्र रुद्रदेव महाराजा तथा प्रपौत्र क्षेमदेवका तथा उसके पुत्र कृष्णराज के केवल राजा रह गये हैं । इससे प्रगट होता है कि कृष्णराज के बंशजोंन स्वातन्त्र्य सुख का भोग नहीं किया था। कृष्णराज के वंशजों का क्या हुआ इसका कुछ भी परिचय नहीं मिलता। संभव है कि वे मुसलमानों के झपट में आ गए हों । क्योंकि वह समय अलाउद्दीन खिलजी के गुजरात और दक्षिण तथा मालवा और राजपुताना क विलोडन करने का है। धवलधरा (वारोलिया ) के मन्दिरों का अवशेष प्रगट करता है । कि उनका विनाश मुशलमानों के धार्मिक उन्मादका देदीप्यमान चिन्ह है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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