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________________ चौलुन्य चन्द्रिका १४६ परन्तु लेखकी तिथि के अतिरिक्त किसी भी राजा के राज्यारोहण आदि की तिथि नहीं दीगई है। प्रस्तुत लेख की तिथि विक्रम संवत १३७३ है परन्तु गणदेवा के मूर्तियों के लेख की १३६२ और १३६३ है । और बारोलिया की मूर्तियों के लेख का संवत १३७१-१३७३ । अतः दोनों स्थानोंकी मूर्तियों और प्रस्तुत लेखकी तिथि में १० वर्षका अन्तर है । संभव है कि कुम्भदेव ने प्रथम गणदेवा में मूर्तियों को स्थापना की हो और बाद को धवलधोरा-बारोलिया में इनके लेखों के अन्तर मे को महत्व पूर्ण परिवर्तन नहीं होता। कृष्णराज और कुम्भदेवकत्र समय १० वर्ष पूर्व और चला जाता है । अब यदि हम कुम्भदेव और कृष्ण का प्रारंभिक समय १३६१ ही मान लेवे और प्रत्येक के लिए २२ वर्ष और ५ महीना का औसत मान लेवं जैसा कि तत्कालीन राजवंशों का औसत है तो उसके पूर्वज वंश संस्थापक कृष्णराज का समय विक्रम १२७१ प्राप्त होगा । अव विचार उपस्थित होता है कि कृष्णराज किस मंगलपुरी का राजा था । क्या यह वही मंगलपुरी है जिसको वसन्तपुरी के चौलुक्यों के पूर्वज विजयसिंह ने अपनी राजधानी बनाई थी। जहां से हटकर वासन्तपुरको वीरसिंह ने अपनी राज्यधानी बनाई थी। क्या वीरसिंहके पूर्वजोंके हाथ से मंगलपुरी छीननेवाला प्रस्तुत लेख का कृष्णराज ही हैं। मंगलपुरी के इन चौलुक्यों का संबंध किन चौलुक्योंके साथ था। इन प्रश्नों का उत्तर देनेका साधन पर्याप्त उपलब्ध नहीं है तथापि अनुमान के बल से कुछ प्रश्नों का समाधान करने का प्रयास करते हैं। अनुमान द्वारा प्रस्तुत लेखके वंश संस्थापक कृष्णराज का समय विक्रम १२७१ के लगभग प्राप्त हुआ है । अब देखना है वसन्तपुरीके चौलुक्योंकी राज्यधानी मंगलपुरी में कबतक रही। वीर को विक्रम संवत १२३५ के लेख में स्पष्ट रूपेण लिखा है कि उसने बासन्तपुर अपनी राजधानी बनाया। इससे स्पष्ट है कि वसन्तपुर वालों के हाथ से मंगलपुरी विक्रम १२३५ के पूर्व दिन गई थी । अथवा उसकी राज्य लक्ष्मीका अपहरण पाटन वाले कर चुके थे। इधर कृष्णराजका समय १२७१ है। इससे आगे इसका समय नहीं मान सकते । अतः यह मंगलपुरी का छीनने वाला नहीं हो सकता। पुनश्च मंगलपुरी की राजलक्ष्मी का पाटन वालों के हाथ मे उद्धार करने वाला वीरसिंह प्रकृत वीरसिंह था। जब उसने पाटन वालों के हाथ से अपने वंश की लक्ष्मी का उद्धार किया था तो ऐसी दशा में मंगलपुरी को भी अवश्य स्वाधीन किया होगा। वीरसिंह के बाद उसका पौत्र कर्णदेव गद्दी पर बैठा । उसके १२७७ के लेख के विवेचन में उसका राज्याराहण और वीर का अन्तकाल १२७६ दिया है। इधर कृष्णराज का अनुमानिक समय १२७१ है। जब तक वह वीरसिंहका संबन्धी भाई भतीजा चचा प्रभृति न हो तबतक उसका मंगलपुरी प्राप्त करना असंभव है । परन्तु इसके और न वीरसिंह के सम्बन्ध का परिचायक सूत्र न तो इसके अपने लेख में है और वीरसिंह अथवा उसके पौत्र के लेख में मिलता है। संभव है कि वीरदेवका कोई संबन्धी हो और उसने इसको मंगलपुरी का शासक नियुक्त किया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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