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________________ चौलुक्य चन्द्रिका कर्णदेव के शासन पत्र का छायानुवाद भगवान आदि वराह देवको नमस्कार । हिमांशु वंशोभूत मानव्य गोत्र हारिती पुत्र सप्त मातृका परिबर्धित कार्तिकेय संरक्षित-भगवान विष्णुकी कृपा से प्राप्त वाराह लक्षण द्वारा शत्रु बिजेता चौलुक्य वंश विभूषण सह्याद्रि नाथ केसरी विक्रम महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक श्री विजयसिंह देव । श्री विजयसिंहका पादानुध्यात् पुत्र महामहाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक श्री धवलदेव । श्रीधवलदेवका पादानुष्यात पुत्र महासामन्त महाराजा श्रीवासन्तदेव। श्रीवासंतदेवका पादानुध्यात पुत्र सामन्तराज श्रीरामदेव । श्रीरामदेवका पादानुध्यात महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक श्री वीरसिंह देव और श्री वीरसिंहका पादानुध्यात पौत्र महाराजाधिराज श्री कर्णदेव । ____ अपनी पितामहींके पाण्मासिक श्राद्ध, अपने पिताके पार्वण श्राद्ध और अपनी माताके श्राद्ध समय जगद्गुरु भवानी' पतिकी पूजा अर्चना के अनन्तर हाथमे कुश जल और हिरण्यलेकर उनकी अर्थात दादी, पिता और माताके अक्षय शान्ति कामनासे जामदानेय गोत्र पंच परवर वेद वेदाङ्गग पारंगत बहुधान निवासी हरिकृष्ण रामकृष्ण और सोमदत्त, देवसारिका निवासी वसिष्ट गोत्री सकल शास्त्र निष्णात यज्ञदत्त और कृष्णदत्त वाधेवली निवासी भारद्वाज गोत्री विज्ञानदत्त हरिदत्त और रेवादत्त और कच्छावली निवासी गौतम गौत्री त्रिप्रवर शुक्ल शाखाध्यायी एकादश ब्राह्मणों को वैहारिका विषयांतपाति कार्पर ग्राम सवृक्षाराम तृण गोचर हिरण्य भोगाभादि समस्त माय के साथ समान भागसे दान दिया। यह बात सबको विदित हो उक्त ग्राम के निवासीओं को उचित है कि समस्त आय ब्राह्मणों को दिया करें। इसमें किसी को बाधा न करना चाहिए। इस ग्रामकी चारों सीमाए निम्न प्रकार से हैं । सीमाएँपूर्व दिशा सिमलता पश्चिम बालाधन दक्षिण शाकंभरी उत्तर बिशालपुर हमारे अथवा अन्य वंशोद्भव भावी भूपालोंको उचित है कि हमारे इस धर्मदाय का पालन करें । धर्मदाय के पालने से पुण्य और अपहरण से महापातक होता है । सगरादि बहुतों ने वसुधा का भोग किया हैं। किन्तु जिसके अधिकार में पृथिवी जिस समय होती है उसके दानका उसको ही फल होता है । भूमिदान देनेवाला साठ हजार वर्ष स्वर्गमें वास करता है । और भूमिदानका अपहरण करने तथा अपहरणकी अनुमति देनेवाला इतनी ही अवधि पर्यन्त नरकमें निवास करता है ।जम्बुकेश्वर निवासी नागर सोमदत्त के पुत्र हर्ष ने इस शासन पत्रको कर्णदेव की आशा से लिखा । इस शासन पत्र का दूतक महासन्धि विग्रही वीरदेव है। इस शासन पत्रकी तिथि आश्विन कृष्ण चतुर्दशि संवत १२७७ विक्रम । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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