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________________ चौलुक्य चन्द्रिका]. १३४ वीरसिंह के शासन पत्र का छायानुवाद कल्याण हो । भगवान आदि देव वाराह विग्रह रूप को नमस्कार हो । सोमवंशोदभूत् जगत्प्रसिद्ध मानव्य गोत्र हारिती पुत्र सप्त मात्रिका परिवर्धित कार्तिकेय रक्षित चौलुक्य वंशी अपने भुजबलसे साम्राटपद प्राप्त करने वाले महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक सह्माद्रिनाथ केसरी विक्रम वियजसिंह । श्री विजयसिंह देव के पादपद्मका अनुरागी उसका पुत्र महाराजाधिराज़ परमेश्वर परम भट्ट रक श्री धवलदेव के पादपद्मका अनुरागी पुत्रमहासामन्त महाराज श्री बसन्तदेव श्री वसन्तदेवका पादपद्मानुरागी पुत्र सामन्तराज श्रीरामदेव । श्री रामदेवके पादपद्माकमल का अनुरागी उनका भ्रातृ पुत्र महाराजाधिराज परमेश्वर परम भट्टारक श्री वीरसिंह देवने पाटन के पटसंदाममें बंधी हुए अपने वंशकी राजलक्ष्मीको मुक्त कर अपनी अकशायनी बना वसन्तपुरमें विराजमान हुए। अपनी इस विजय केहर्ष उपलक्ष्य में भगवान भूत भावानि पति कर्दमेश्वर की सेवारत गौतम गोत्र पंच परवार आश्वलाइन शाख्याध्या यज्ञदत्त - सोमदत्त - हरिदत्त रुद्रदत्त और विष्णु दत्त प्रभृति पांच ब्राह्मणको वालखिल्यपूर नामक ग्राम वृक्षाराय तृणगोचर भोगभाग हिरण्यादि सर्व प्रकारके आय कर्दमेश्वर हदमें स्नान और जगगुरु भवानी पतिकी आराधना करके अपनी माता और पिता तथा अपने पुण्य और यश वृद्धिके कांक्षासे हाथमें कुछ जल और सुवर्ण लेकर कथित ग्राम दान दिया इस ग्राम सीमायें पूर्व दिशा-अम्बिका ग्राम दक्षिण दिशा-पूर्णा नदी पश्चिम दिशा-खटवांगीय उत्तर दिशा-करंजावली इस प्रामके प्रतिवासिओं को उचित है कि ग्राम के कर को इन ब्राह्मणों को विना किसी व्यवधान के दिया करें। इसमें किसीको बाधा उपस्थित न करना चाहिए। हमारे वंश अथवा अन्य भावी राज्यवंश के नरेशोंको उचित है कि हमारे इस धर्मदायकी रक्षा करें । अपनी दी हुई अथवा दूसरेकी दी हुई वसुधाका जो अपहरण करता है वह महापातकी होता है । जो पालन करता है वह पुण्यभागी होता है। ___ कहामी गया है:- भूभिदान देने वाला व्यक्ति साठ सहस्त्र वर्ष स्वर्गमें वास करता है। और इतनी ही अवधि पर्यन्त भूमिदानका अपहरण के अनुमति देनेवाला नमें निवास करता है । बहुत से सगरादि राजाओंने पृथिवीकाभोग किया है परन्तु प्रदत्त भूमि जिसके राज्य में होती है उसको ही उसके दानका फल प्राप्त होता है। बाण नाम पांच-त्रय तीन - पक्षदो और भानु नाम एक अर्थात १२३५ संख्यावाले विक्रम संवत के माथ शुक्ला षष्ठिको आनन्दपुरके रहनेवाले भूदेव ब्राह्मणके बेटा आत्मारामने राजाकी आज्ञा से इस शासन पत्रो लिखा । ब्राह्मणों के अग्रणी पुरोहित सोमदत्त त्रिवेदी और रुद्रसिंह इस शासन पत्रके दूतक हैं। भूधरने इसको दो ताम्र पटकों पर उत्कीन किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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