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________________ F . . 21८1-2 2 . - पलकर सर्व प्रथम कृष्णातटवर्ती स्थानो पर क्यों रुक गया । और वहां ही विहमके राज्यके गामको, लुदने लगा । हमारे पाठकोको मालूम होगा कि हुम उपर प्रकट कर चुके हैं कि चौलुक्य साम्राज्यका पाय अप्रेश जयसिंहके अधिकारमें था। दो और उसके समीपुत्राला किशुवलाल पट्टडकाल प्रदेशमी उसके अधिकार में था । एवं विशुवलाल का प्रधान स्थान पट्टड्काल था। पुनश्च पटूहकार मालिप्रभा नदी के उत्तर तट पर अवस्थित था। अब यदि पट्टडकल विशवलाल प्रदेश और कृष्णा नदीके भौगोलिक अवस्थान का परिचय प्राप्त कर सके तो हमे विक्रम और जयसिंह के राज्यकी सीमाका परिचय प्राप्त होने और कृष्णा तट पर उसके आनेका कारण प्रकट हो जावेगा। हम बता चुके हैं कि पट्टडकाल वादामि से ८-१० मील पूर्वोत्तरमें है और बाकामी वर्तमान वीजापुर नामक जिलामें है । कृष्णा नदी विजापुर जिला में पूर्वसे पश्चिम प्रवाहित हैं और बिजापुर जिलाके प्रसिद्ध स्थान गलगलीसे लगभग पांच मील उत्तर गेहनुर नामक स्थान के पास जिजामे प्रवेश करती है। ए मालामा संगम स्थान के संगमेश्वर से दक्षिण धानुर नामक स्थानसे लगभग आठ मील पूर्व पर्यन्त ५४ मील वह कर पश्चात निजाम राज्यमें प्रवेश करती है । अतः पट्टडकाल से कृष्णा अधिक से अधिक १७-१८ मीलकी दूरी पर है । अब हमारे पाठक समझ चुके होगैकि जयसिंह वननासी से चल कृष्णा तट पर क्यों उपस्थित हुआ। इसका अर्थ स्पष्ट है । जयसिंह वनवासी से चलकर बादामि अथवा पटड़काल में ड्ट गया होगा। और पठ्ठड्काल पर अपने अधिकारको सुरक्षित रखने के लिए मरने मारने के लिए कटिवष्य हो गया होगा। एवं वहां पर अपनी सेनाको एकत्रित किए होगा। उधर जयकर्ण पट्टडकाल को अपने अधिकार में करने के लिए तुला बैठा होगा। बिल्हण ने जो लिखा है कि जयसिंह के सेना संग्रह का सम्बाद पाकर विक्रमने दो बार अपने राज्यदूनको उसके पास भेजा । इसका अर्थ है कि वह जयसिंहकों पटसकाल प्रदेश जयकणे को देने के लिए समझाना चाहता था परन्तु जयसिंह अपने भावी अधिकार के विचारसे पट्टडकाल किसीमी अवस्था में देनेको तैयार न हुआ होगा। उधर जयकर्ण बलपूर्वक पट्टडकाल पर अधिकार करना चाहता होगा। अतः दोनोंकी सेनामें पड्कालकी सीमापर बहुने वाली कृष्णा के तट पर छेडछाड हुआ होगा। जिसमें कदाचित जुयकर्षको अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा होगा क्योंकि शक १००६ के पश्चात जयकर्णका कहीं भी उल्लेख नहीं पाया जाता । और जयसिंह सेनासहित कृष्णा पारकर उसके तटवर्ती प्रदेशोंपुर अधिकार जमा बैश होगा पुनश्च सदा के लिये इस विग्रहको शान्त करने के विवार से विक्रमादित्यको मी गद्दी पर से उतारने के लिये कल्याण के प्रति अग्रसर हमा होगा। विक्रमको अन्तमें जयसिंह के साथ अपने राज्य और प्राण दोनोंकी रक्षा के लिये स्वयं आगे बहकर लड़ना पड़ा होगा । या युद्धमें मी प्रथम जयसिंह विजयी हुआ था। परन्तु दुर्भाग्यसे अन्त में उसे हारना पड़ा। . वधुत विवरणसे निकम और जयसिंहले विप्रहका कारण युद्धका स्थान और तिथि एवं परिणाममा हो गया। प्रबुवा म विचारता हु गया है कि युद्ध पक्षात जयसिंह बा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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