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________________ चौलुक्य चंद्रिका मध्यवर्ती भूभागपरही परिमीत था। परन्तु ताप्ति नदीके दक्षिण भूभागपरभी इनके क्षणिक अधिकारका परिचय मिलता है। एवं इनका विवेचन इनकी निम्न वंशावली बताता है। जय भट र ण ग्रह जय भट जय भट इनमें वंश संस्थापक दद प्रथम और उसके उत्तराधिकारी जयभटका न ता विशेष एतिहासिक परिचय और न निश्चित समयही ज्ञात है। हां दद प्रथम के पौत्र और जय भटके पुत्र दद द्वितीय और रणग्रह के तीन लेख प्राप्त हैं। कथित तीन लेखो में खेडा से प्राप्त दो लेख सं. ३८० और ३८५ के है और इसके भाई रणग्रहका एक लेख खेडा से प्राप्त सं. ३६१ का है। कथित शासन पत्रोका संवत त्रयकूट संवत्सर है ! जिसका विक्रम ३०६ तदनुसार शक संवत् १७१ में हुआ था । अंत इनकी तिथिकी समका लिनता त्रयकु. ३८० शक ५५१ और विक्रम ६८६ त्रयकु ३८० श. सं. ५५६ और विक्रम ६९१ और त्रेकु ३९१ श. सं. ५६२ और विक्रम ६९० से है। अब यदि हम दद द्वितीय का प्रारंभिक काल ३८० को मान लेवे. तो वैसी. दशामें वद प्रथमका प्रारंभिक समय लगभग ३३.२ मानना होगा परन्तु ऐसा मानने के पूर्व हुमे, विचारना होगा कि अयकू. ३८० के आसपा: समे गुर्जरोके अभ्युदयका समर्थन हो सकता है अथवा नहीं है ? हम पूर्वमे बता चुके है कि गुर्जर जातिका भीनमालमे अभ्युदय काल लगभग विकम संवत ५७०. है। अब यदि ५७० को त्रयकु बनावेतो ३०६ घटाना पडेगा । इस प्रकार २६८ त्रयकुटमे गुर्जर जातिका. राज्य संस्थापन भीनमालमे हो चुका था। गुर्जर जातिके त्रयकुटक २६४. अभ्युदय और दलू. प्रथमके अनुमानिक समय ३३० के मध्य ६६ वर्षका अन्तर हे । वल्लभिके. इतिहासका पर्यालोचन प्रकट करता है कि धरसेन द्वितीयके विरुदमे परिवर्तन हुआ है उसके गुप्त: वल्लभि संवत २५२ के तीन शासन पत्र में उसके विरुद " परं महेश्वर महाराजा" और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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