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________________ चौलुक्य चंद्रिका से छोर पर्यन्त था । और मौर्यवंशका परम प्रख्यात राजा अशोक था। अशोक के आज तक १४ शासन पत्र भारतके प्रायः प्रत्येक प्रान्तोंसे पाये गये हैं। वर्तमान गुजरात प्रदेशकी पश्चिम सीमापर अवस्थित प्राचीन सौराष्ट्रके गिरनार नामक पर्वतकी उपत्यका से भी अशोक का शिला शासन प्राप्त हुआ है। परन्तु उसमेंभी अथवा उसके किसी अन्य लेखमें गुजरात और लाटका नामोल्लेख नहीं पाया जाता । मौर्योंके पश्चात् सौराष्ट्र और अवन्ती आदि प्रदेशोंमें क्षत्रपोंका सौभाग्योदय हुआ था जहां उनके राज्यकालीन अनेक लेख पाये जाते हैं । परन्तु उनमेंभी गुजरात और लाटका दर्शन नहीं होता। क्षत्रपोंमें अनेक प्रसिद्ध राजा हो गये हैं। इनमें रुद्रदामका एक लेख गिरनार पर्वतकी उपत्यका अवस्थित अशोकके शिलाशासन के निम्न भागमें उत्कीर्ण है। इस लेखके पर्यालोचनसे प्रकट होता है कि इसके आधीन अकरावती-अनुप-आनर्त-सुराष्ट्र-स्वभ्र मरकच्छ-सिन्धुसुवीर-कुकुटु-अपरान्त और निषाद देश था। कथित देशों में अकरावती पूर्व और पत्रिम मालवा, अनुप आनत और अवन्तीका मध्यवर्ती भूभाग, आनत उत्तर गुजरात प्रदेश, सुराष्ट्र वर्तमान काठियावाड, स्वभ्र-साबरमती नदी उपत्यका प्रदेश, कच्छ और मरू वर्तमान कच्छ और मारवाई देश,. सिन्धुसुवीर वर्तमान सिन्ध प्रदेश परन्तु कुकुर और निषादका परिचय निश्चित रुपैसे नहीं मिलता और अपरान्त वर्तमान प्रसिद्ध कोकण प्रदेश है । क्षत्रपवंशका अभ्युदय लगभग विक्रम संवत १५७ में हुआ था। इस वंशका परम प्रसिद्ध राजा रुद्रदाम का समय विक्रम संवत २०० और २१५ के मध्य तदनुसार ईस्वी सन १४३ से १५८ पर्यन्त हैं। अतःसिद्ध-हुआ कि विक्रम संवत २१५ पर्यन्त वर्तमान गुजरात और लाट देशका प्रकार नहीं हुआ था। हां इस समय महाभारत कालीन देशोंके मध्य अनेक छोटे मोटे देशोंका नामाभिमान अवश्य हुआ प्रतीत होता है। क्योंकि रुद्रदामके लेखमें हम देखते हैं कि आनर्त और: मारवाके अन्तर्गत स्वभ्रका-आनत और अवन्तिके मध्य अनुप देशका अभ्युदय हो चुका थानतः और अपरान्तके मध्यवर्ती परान्त देशका लोप हो कर उसका भूभाग आनत और अपमन्त में मिलाया था। गुप्त वंशका अभ्युदय विक्रम संवत ३७५-७६ और अन्त ५२७ है। तदनुसार इस्वी सन ३१८-१९ से लेकर ४७० पर्यन्त इनका राज्यकाल १५१ वर्ष है । इस अवधिमें इस वंशके सात राजा हुए हैं। इन मे चौथा राजा समुद्रगुप्त परम प्रख्यात और समस्त भारतका अधिपति था। इसका समय विक्रम संवत ४२७ से ४४२ तदनुसार इस्वी सन ३७० से ३८५ पर्यन्त १५ वर्ष है। इसके प्रयाग राज वाले स्तम्भ लेखमें इसके विजित देशों और आधीन राजाओंक WE ARE PR PR 1 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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