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________________ [ लाट नन्दिपुर खण्ड लाटपति चौलुक्यराज त्रिविक्रमपाल शासन पत्रका छायानुवाद । कल्याण हो । जय और अभ्युदय हो । भगवान जिनके ललाटपर चंद्र विराजमान, जिनने गंगाको अपनी जटाओमें अटका रखा-जिनका कण्ठ नीला- जिनके गलेमें भाग माला और कटिमें व्याघ्राम्बर तथा हाथमें विशूल है-को नमस्कार है। शक वर्ष EEE के श्रावण शुक्ल षष्ठीको समस्त राजा वलीसे अलंकृत नन्दिपुर में-श्रीमानिम्बार्क कुलरूप कमलको विकसित करनेवाला दिवाकर-देवसेनानी स्कंध के समान सेनापति श्री वारपदेव । और श्री वारपदेवका पादानुध्यात सारस्वतीय पाटण महोदधिका मन्थन करनेवाला मेरू और अपनी सलवारकी धारसे वसुधाका आधिपत्य प्राप्त करनेवाला श्रीमन्महाराज परमेश्वर परम भट्टारक श्री गोरगिराज-और श्री गोरगिराजका पादानुध्यात श्री कीर्तिराज-और श्री कीर्तिराजका पादानुध्यात श्री वत्सराज-और श्री वत्सराजका पादानुध्यात श्री त्रिभुवनपाल-और श्री त्रिभुवनपालका पादानुध्यत कर्णरूप कुमुद अर्थात कमलके अंकुर का नाशक तुषार तथा चौलुक्य वंश अब्धि को आनंद देने वाला चंद्रमा श्री त्रिविक्रमपाल-आज समस्त राजपुरुषो-ब्राह्मणों तथा इतर प्रजावर्गको आदेश करता है कि-नवीन बादल रूप अम्बर से आच्छादित वसुंधरा के होने पर अपने चाचा श्रीमान्महाराजाधिराज जगत्पाल के भुजाघात से संचारित प्रचंड वायु से विताडित शत्रु रूप अन्धकारके नाश द्वारा नागसारिका मण्डलके बंधन मुक्त होने और वठपद्रक विषयके विश्वामित्री नदी तटपर अपने भुजबल रूप महार्णव में शत्रुरूप दानव सेनाके डूबने पश्चात ब्राह्मणोंके स्वस्ति वाचक मंत्रोच्चार ध्वनिसे समाहत, आनंद विभोर मर्यादा त्यागने वाली प्रजासे घिरा हुआ-नगरकी अटारिकाओंकी झरोखामे अवस्थित कुलवधुओंके फेंके हुए पुष्पोंकी धारा में निमज्जित-सिरपर जल परिपूर्ण सुवण कलस लिये सैकड़ों पानी भरनेवाली त्रिओं के मधुरगान से परिपूर्ण श्रवण रंध्र और भेरी शंख मृदंग ताल झांझ के गुज़ार ध्वनि से परिपूर्ण दिगन्तर अवस्थामें अपनी माताके आदेशसे नर्मदामें स्नान के अनन्तर विविध प्रकारके दानोंसे ब्राह्मणों को संतुष्ट कर-अपने चचाके मना करने परभी-अपने चचेरे भाई श्रीमन्महाराजधिराज पद्मदेवको नागसारिका मण्डलके पांचसौ गाम वाले अश्याम नामक विषयका सामन्तराजा बनाया और। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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