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________________ चौलुक्य चंद्रिका ] वर्तमान गुर्जर प्रदेश का राजनैतिक प्रभाव कैथी लिपी वाले प्रदेश मगध, मिथिला, बनास्ता, अवध आदि में किसी समय था। इस प्रश्न का सिधा उत्तर है कि भारतीय इतिहास उच्चे स्वर में घोषित करता है। किं उक्त प्रदेश गुर्जर प्रदेशके प्रभाव में कदापि नहीं थे वस्न गुर्जर प्रदेश ही सेकडो वर्ष पर्यंत कैथी लिपीवाले प्रदेशों के राजनैतीक यूप में बंधा था। इतनाही नहीं ज्ञात ऐतिहासिक काल से लेकर आज पर्यत का इतिहास प्रगट करता है कि गुजरात प्रदेश में राज्य करने वाले मौर्य, क्षत्रप, यकूठक, सेंन्द्रक गुप्त, मैत्रक, गुर्जर, चौलुक्य और राष्ट्रकूट आदि कोईभी वंश गुर्जर प्रदेश का निवासी नहीं था। कथित राजवंशोंमेसे मौर्य, गुप्त और मैत्रक मगध-अवध निवासी, अयन और सेन्द्रका संभवतः मध्य प्रान्त बासी, चौलुक्य और राष्ट्रकूट दक्षिणापथ बासी थे। हां गुर्जर वंश और क्षत्रपोंका मूल निवास अद्यावधि निश्चित नहीं है। ऐसी दशा में नतो सैन्द्रक या वयकूटक और न चौलुक्क या राष्ट्रकूट गुर्जर लिपी का प्रचार करने वाले माने जा सकते है। इन वंशो के हटते ही गुर्जर और क्षत्रप वंश सामने आता है परन्तु इन दोनों को हम गुर्जर लिपी का प्रचार करने वाला नहीं मान सकते। कारण कि यद्यपि इनका राज्य गुर्जर प्रदेश में था परन्तु इनके प्रभाव का मगध आदि कैथी लिपी प्रदेश में अत्यन्ताभाव था। कथित चौलुक्य आदि राज वंशों के विचार क्षेत्र से हटतेही केवल मौर्य गुप्त और मैत्रक वंश त्रय शेषभूत रह जाते हैं । इस तीनों वंशों का राजनैतिक प्रभाव गुर्जर प्रदेश में लग भय एक हजार वर्ष रहा। संभव है इन तीनो में से किसी ने मगध प्रवासी होने के कारण अपनी लिपी का प्रचार अपने अधिकृत काठियावाड-गुर्जर प्रदेशो में किया हो। ___ हम मौर्य तथा गुप्तों को कैथी लिपी का गुर्जर प्रदेश में प्रचार करनेवाला नहीं मान सकते। हां मैत्रकोंको हम निशंकोच होकर कैथी लिपी का गुर्जर प्रदेश में प्रचार करने वाला घोषित करते हैं । हमारी इस घोषणा का कारण प्रबल है। काठियावाड प्रदेश में मैत्रक वंश की स्थापना करने वाला भटारक था। वह गुप्तों का सेनापति था। वह कठियावाडमें नवागन्तुक था। वह गुप्तो द्वारा कठियावाडमें शासक रुपसे भेजा गया था। अतः जब स्वतंत्र बना तो उसने अपनी लिपी का प्रचार अपने अधिकृत प्रदेश में किया। एवं काल पाकर उसकी लिपी गुर्जर लिपी नामसे प्रख्यात हुई। हमारी कथित धारण शेख चिली की उड़ान मात्र नहीं है। वरन हमारे पास उसके प्रबल कारण है। मैत्रक वंश को पश्चात्य और प्राच्य अनेक विद्यानों ने अपनी अभिरुची के अनुसार किसी ने विदेशी, किसी ने गुर्जरोसे अभिन्न किसी ने हून और किसी ने अन्य जातिका बताया है। जिनकी प्रवृती भारतीयता के प्रति अधिक झुकी थी तो उन्होंने मैत्रकोंको पौरणिक सूर्य वंश से मिलाकर उन्हे शिशोदियों का पूर्वज घोषित किया है । परन्तु कबि सोढल कृत उदय सुन्दरी की उपलब्धी ने सभ को मोन बमा दिया है । कथित पुस्तक का लेखक अपने को मैत्रक राज वंश का वंशधर और अपनी जाति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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