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________________ चौलुक्य चंद्रिका ] - - - - -- - - विक्रमादित्य __ जयसिंह वर्मा मंगलराज पुलकेशी लेखमें स्पष्टरूपसे वंशावली कथित नामोंका सम्बन्ध प्रकट किया गया है । लेखसे प्रकट होता है कि कीर्तिवर्माके पुत्र पुलकेशीको विक्रमादित्य और जयसिंह नामक दो पुत्र थे । विक्रम वातापिकी गद्दीपर बैठा और जयसिंहको लाट मण्डलकी जागीर मिली । जयसिंहके मंगलराज और पुलकेशी नामक दो पुत्रोंका उल्लेख है। जयसिंहका उत्तराधिकारी मंगलराज हुआ और मंगलराजका उत्तराधिकारी उसका छोटा भाई पुलकेशी हुआ। पुलकेशीही प्रस्तुत दानपाका शासनकर्ता है । इस शासनपत्रके द्वारा उसने तैत्तरीय शाखाध्यायी वत्सगोत्री गोविन्द दिवेदीके पुत्र अंगद द्विवेदीको जो वनवासी प्रदेशका रहनेवाला था, कार्मण्येयाहार विषयका पद्रक ग्राम दान दिया था। प्रदत्त ग्राम पद्रककी सीमा आदिका उल्लेख दानपत्रमें नहीं है । अतः हम नहीं कह सकते कि प्रदत्त नाम पद्रक का वर्तमान समयमें अस्तित्व है या नहीं । परन्तु कामध्येयको हम निाश्चतरूपसे जानते हैं कि यह स्थान तापी तटपर अवस्थित है और वर्तमान समय कमरेजके नामसे प्रख्यात है । कार्मण्येयका उल्लेख इस शासनपत्र के पूर्ववर्ती शासनपा, जो पुलकशोके ज्येष्ठ भ्राता युवराज शिलादित्यका शासनपत्र है और सूरतसे प्राप्त हुआ था, में किया गया है । और हम भी इसके अवस्थानादिका पूर्णरूपेण विचार उक्त शासनपत्रके विवेचनमें कर चुके हैं। दुर्भाग्य से इस शासन पत्र का संवत् स्पष्ट नहीं है । अतः अनेक प्रकारकी आशंकाएं विकराल रूप धारण कर सामने खड़ी होती हैं । चाहे इसका संवत् स्पष्ट हो या न हो, इसमें कथित ग्रामका परिचय हमें न मिले, परन्तु यह शासन पत्र भारतीय इतिहास के लिये बड़ेही महत्व का है। इस शासनपत्र के पालोचनसे प्रगट होता है कि पुलकेशी के राज्य कालमें ताजिक अर्थात यवन सेनाने सिन्ध, कच्छ, सौराष्ट्र, वापोत्कट, मौर्य और गुर्जर को कर दिया था, अर्थात विजय करती हुई आगे बढ़ती तापी तट के वर्तमान कमलेज पर्यन्त चली आई थी । उसका विचार दक्षिणा पथ में प्रवेश करनेका था। किन्तु पुलकेशी ने उनके विषैले दांत निकाल उन्हें स्वदेश लौटनेके लिये बाध्य किया था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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