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________________ ८ए ] हमारी समझमें यह लेख हमारा त्राण दाता है । इस लेखकी संप्राप्ति हमारी दृढ़ नौका है । इसके पर्यालोचन से प्रगट होता है कि इसमें वातापि के चौलुक्य राज सत्याश्रय विनयादित्य वल्लभ महाराज को अधिराज रूपसे स्वीकृत किया गया है । अतएव यह लेख विनयादित्य राज्यारोहण के बादका है । विनयादित्य वातापि के चौंलुक्य राज विक्रमादित्य प्रथम कापुत्र और उत्तराधिकारी था । इसका राज्यकाल शक ६०१ से ६१८ पर्यन्त है । अतः सिद्ध हुआ कि युवराज शिलादित्य का प्रथम लेख ६०१ से पूर्वका और दूसरा इसके बाद का है । अब यदि हम शिलादित्य के दूसरे लेख संवत ४४३ वाले को विनयादित्य के अन्तिम समय शक ६१८ का मान लेवें तो इस अज्ञात संवत और शक संवत में १७५ वर्षका अन्तर होता है । इस प्रकार युवराज शिलादित्य का प्रथम लेख संवत ४२१ वाला शक ५६६ का ठहरता है । अतः हम निश्चय के साथ कह सकते हैं कि इस अज्ञात संवत और शक का अन्तर १७५ है । क्यों कि इस प्रकार मानने से वातापि के चौलुक्य राज वंशकी तिथि का क्रम सुचरुरूपेण मिल जाता है। इस अज्ञात संवत्सर का शक संवत से अन्तर प्राप्त करने के पश्चात भी हमारा त्राण नहीं हुआ। क्यों कि युवराज शिलादित्य और मंगलराज के समय का अन्तर का समाधान नहीं होता। इसके संबंध में हम कह सकते हैं कि शिलादित्य के द्वितीय लेख संवत ४४३ तदनुसार शक ६१८ और विक्रम ७५३ से मंगलराज के लेख का अन्तर तारतम्य संमेलन से ही श्राण होगा। युवराज शिलादित्य के द्वितीय लेख संवत ४४३ वाले को शक ६१८ का सिद्ध होते ही मंगलराज के लेखसे केवल ३५ वर्षका अन्तर रह जाता है। यह अन्तर कोई महत्व पूर्ण अन्तर नहीं है । इसका निश्चित तथा संतोषजनक रीत्या समाधान शिलादित्य और मंगलराज के लेखों को उनके अन्त समय के समीप वाला मान लेने से हो जाता है | मंगलराज के लेखको उसके अन्त समय का अथवा अन्त समय के समीप का मानना केवल हमारे अनुमानपरही निर्भर नहीं है। वरन् हमारी इस धारणा का प्रबल सहायक मंगलराज के उत्तराधिकारी और लघुभ्राता पुलकेशी का संवत ४६० वाला लेख है | मंगलराज के लेख और इस लेखके मध्य केवल ८ वर्षका अन्तर है । पुनश्च शिलादित्य युवराज Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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