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________________ चौलुक्य चंद्रिका ] काठियावाड़ प्रदेश में था। गुप्तों का गुप्त नामक संवत्सर अपना था। उक्त गुप्त संवत्सरका प्रचार उनके राज्य काल तथा कुछ दिनों पर्यन्त वर्तमान गुजरात-काठियावाड़ में था। अतः संभव है कि कथित संवत ४२१ गुप्त संवत हो। गुप्त संवत का प्रारंभ शक ८८ तथा विक्रम २२३ में हुआ था । अब यदि हम कथित संवत ४२१ को गुप्त संवत मान लेवें तो वैसी दशा में उसे शक संवत बनाने के लिये उसमें हमें ८८ वर्ष जोड़ना होगा । कथित संवत ४२१ में ८८ जोड़ने से शक ५०६ होता है। इस प्रकार युवराज शिलादित्य और मंगलराज के मध्य पूर्व कथित १७ वर्षका अन्तर और भी अधिक बढ़ जाता है। अर्थात उक्त ६७ वर्ष का अन्तर १७ से बढ़कर १४४ हो जाता है। इस हेतु संवत ४२१ को हम गुप्त संवत नहीं मान सकते। वर्तमान गुजरात और काठियावाड़ प्रदेश में विक्रम, शक, गुप्त और वल्लभी संवत्सरों के अतिरिक्त त्रयकूटक नामक संवत्सर का भी प्रचार था। अब विचारना यह है कि कथित संवत ४२१ प्रयकूटक संवत्सर हो सकता है या नहीं। त्रयकूटक संवत्सर का प्रारंभ विक्रम संवत ३०५ में हुअा था । अब यदि हम इसे त्रयकूटक संवत मान लेवें तो ऐसी दशा में इसे विक्रम बनाने के लिये ४२१ में ३०५ जोड़ना होगा । ४२१+३०५=७२६ होता है। उपलब्ध ७२६ विक्रम को शक बनाने के लिये हमें १३५ घटाना होगा। ७२६-१३५=५६१ शक होता है। मंगलराज के शासन की तिथि ६५३ शक हमें ज्ञात है। अतः इन दोनों का अन्तर ६२ वर्षका पड़ता है। इस हेतु इस विवादास्पद संवत ४२१ को हम प्रयकूटक संवत भी नहीं मान सकते । अनेक पाश्चात्य और प्राच्य विद्वानों ने कथित संवत ४२१ को त्रयकूटक संवत माना है। परन्तु हम उनका साथ नहीं दे सकते। ऐसी दशा में इस संवत को हम अज्ञात संवत्सर कहते हैं। विवेचनीय संवत ४२१ को अज्ञात संवतमानने के बादभी हमारा त्राण दृष्टिगोचर नहीं होता क्यों कि शिलादित्य और मंगलराज के समय की संगति मिलाना आवश्यक है। हम ऊपर शिलादित्य के दूसरे लेख संवत ४४३ वाले का उल्लेख कर चुके हैं। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034491
Book TitleChaulukya Chandrika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyanandswami Shreevastavya
PublisherVidyanandswami Shreevastavya
Publication Year1937
Total Pages296
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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