SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ७८ ] और गिनती भी लिया है, देखो लघुपर्युषणा के पृष्ठ २५ में. इसलिये शिखरको छोटी कहना और गिनती में छोड देना बडी भूल है ॥ ३ ॥ इसीतरहसे अधिक महीने में धर्म, ध्यान, व्रत, पञ्चख्खान, तप, जप, चौमासी, पर्युषणा, कल्याणकादि धर्म कार्य निषेध करना ॥ ४ ॥ वर्तमानिक आवण, भाद्रपद, आश्विन बढने पर भी समवायांग सूत्रवृत्ति कारका अभिप्राय को समझे बिनाही पीछे ७० दिन ठहरनेका आग्रह करना || ५ || श्रावण - पौष बढनेपर एक महीने में कल्याणिक मा नने से दूसरे महीनेको छुटने का कहकर अधिकमासके ३० दिन उडादेना ॥ ६ ॥ दो आषाढ होनेपर प्रथम आषाढको कालचूला ठहराना ॥ ७ ॥ दुसरे आषाढमें चौमासी करने से प्रथम छुट जाने का क हना ॥ ८ ॥ और नवतत्त्व - षव्य के स्वरूपकी तरह चंद्र और अभिवर्धित दोनो वर्षौंका समानही स्वरूपकहा है, तथा दोनोंसेही मा स पक्ष तिथि वर्ष वगैरहका व्यवहार चलता है, तिसपरभी दिनोंकी गिनती के विषय में दिन प्रतिबद्ध पर्युषणाकी चर्चा में विषयांतर करके मास व ऋतु प्रतिबद्ध कार्योंको दिखलाकर अधिकमासके दिन गिनती में छोड़ देना || ९ || अधिकमास आनेसे ५० वें दिन पर्युषणा पर्व करनेको जैनशास्त्र खिलाफ ठहराना ||१०|| और पंचाशक के पूर्वा पर संबंधवाले संपूर्ण सामान्य पाठको छोडकर शास्त्रकार महाराजके अभिप्राय को समझेबिना थोडासा अधूरा पाठ भोलेजीवोंको दि. खलाकर, वीरप्रभुके विशेषतासे आगमोक्त छ कल्याणकोका निषेध करना ॥ ११ ॥ और सुबोधिकाकी तरह समय सुंदरोपाध्यायजी कृतकल्पलतामे खंडन मंडनका विषय संबंधी कुछभी अधिकार नही है. तो भी झूठा दोष आरोप रखना ॥ १२ ॥ इत्यादि अनेक बातें आपकी दोनों कीताबों में शास्त्रविरुद्ध व प्रत्यक्ष मिथ्या और बालजीवोंको उन्मार्गमें गेरनेवाली भरी हुई हैं, उसका लेख द्वारा या सभा में निर्णय करने को तैयार हो जाईये, मगर झुंठेको क्या प्रायश्चित देना वगैरह नियम होने चाहिये. वीरानिर्वाण २४४४, विक्रमसंवत् १९७५, वैशाख वदी १२, हस्ताक्षर - मुनि - मणिसागर, लालबाग, मुंबई. उपर मुजब छपा हुआ विज्ञापन न्यायरत्नजीको पहुंचाया मगर उसमें लिखेप्रमाणे सभामें आकर शास्त्रार्थ करनेका मंजूर नहीं किया तथा इन विज्ञापन में बतलाई हुई उत्सूत्र प्ररुपणारूप अपनी भूलोंको सुधारनेकाभी प्रकट नहीं किया, और शास्त्रप्रमाणसे साबित करके भी बतला सकेनहीं. सर्वथा मौनकरबैठे तब हमने उनकीहारका विशापन छपवाकर प्रकाशित कियाथा सो नीचे मुजब है ; Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy