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________________ [७७] हीनोके हिसाबसे हमेशां उक्त पर्व फिरते हुए चले जायेगे जैसे मु. सल्मानोके ताजिये- हर अधिकमासमें बदलतेहै" यह लेखभी उ. त्सुत्र प्ररूपणारूपहीहै, क्योंकि जिनेंद्रभगवान्ने अधिकमहीना आने परभी वर्षाऋतुमेही पर्युषणा करना फरमायाहै, मगर वर्षाऋतुविना माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाखमें शरदी व धूपकालमें पर्युषणा करना नहीं फरमाया, जिसपरभी आप अधिकमहीनाके ३० दिन उडा दे. नेकेलिये मुसल्मानाके ताजियोंके दृष्टांतसे हर अधिक महीनेके हि. साबसे बारोही महीनों में [ छही ऋतुओंमें ] पर्युषणा फिरते हुए च. ले जानेका बतलाते हो, सो किस शास्त्र प्रमाणसे उसकाभी पाठ ब. तलाइये, या अपनी भूलका मिच्छामि दुक्कडं दीजिये, अथवा सभामें सत्य ठहरनेको तैयार हो जाईये ॥२॥ और भी 'पर्युषणापर्व निर्णय' के मुख्यपृष्ठपर 'अधिकमहीना जिसवर्ष में आवे उसवर्षका नाम अभिवर्द्धित संवत्सर कहते हैं और वो अभिवर्द्धित संवत्सर तेरह महीनोंका होता है, मगर अधिक महीना कालपुरुषकी चूला यानी चोटी समान कहा इसलिये उसको चातुर्मासिक- वार्षिक और क. ल्याणिकपर्वके व्रत नियमकी अपेक्षा गिनतीमे नही लियाजाता' तथा 'अधिकमास निर्णय' के प्रथम पृष्ठके अंतमें 'अधिक महीना काल. पुरुषकी चूला यानी चोटीसमानहै, आदमीके शरीरके मापमें चोटी. का माप नहीं गिनाजाता, इसतरह अधिक महीना अच्छे काममें न. ही लियाजाता' इस लेखसे अधिक मासको केशोंकी चोटी समानकहतेहो और गिनतीमें लेना निषेध करते हो सोभी सर्वथा जिनाशा विरुद्ध है, देखो-चोटी तो १०-२० अंगुल, अथवा १-२ हाथ लंबी. भी होसकतीहै,व नहीं भी होतीहै. और शरीरके मापने चोटीका कुछभी भाग नहीलियाजाता, इसीतरह यदि अधिकमासभी चोटी स. मान गिनतीमें नहीं लियाजाता तो फिर उसको गिनतीमें लेकर १३ महीनोंके, २६ पक्षोके,३८३दिनोंका अभिवति संवत्सर क्यों कहा? देखिये-जैसे पर्वतोकेशिखर और घास एकसमाननहीं है तथा मंदिरोकेशिखर और ध्वज एक समाननहींहै. तैसेही चूला याने शिखरऔर चोटीएकसमाननहींहै इसलियेचोटीकहोंगे तो गिनतीनहीं और गिनतीमे लेवोंगे तो चोटी समाननहीं. चोटीकहोंगे तो अभिवर्द्धित संवत्सर कैसे बना सकोगे? इसको बिचारो, अधिकमासको चोटो समान कहकर गिनतीमे छोडना किसीभी जैनशास्त्र में नहीं कहा, निशीथचूर्णि व दशवैकालिक वृत्तिमें कालचूला याने शिखरकहाहै, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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