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________________ [३६] और भी देखो - ३५४ दिने संवत्सरी प्रतिक्रमण करें तो भी व्यव हारमें ३६० दिनोंके क्षामणे करनेमें आते हैं, मगर अप्रत्याख्यानीय कषायके ३६० दिनोंके वर्षकी स्थितिका निश्चयमें बंध पडा होगा वह बंध, ३५४ दिनों में (३६० दिनोंका) कभी क्षय न हो सकेगा, किंतु वो तो समय २ के हिसाब से पूरे पूरे ३६० दिनही भोगने पडेंगे । इसीतरह से चौमासी, व पाक्षिककाभी समझलेना. इसलिये व्यवहा रिक क्षामणोंके साथ निश्चय कर्मस्थितिका दृष्टांतसे भोले जीवोंको मर्यादा उल्लंघन होने का भयबतलाते हुए अपनीविद्वत्ताके अभिमानले अधिक महीना निषेध करना चाहते हैं सो शास्त्रविरुद्ध होनेसे सarr अनुचित है | इसको भी विशेष तत्त्वज्ञजन स्वय विचारलेवेगे । ३७ - चूलिका संबंधी एक अज्ञानता ॥ कितने लोग शास्त्रोंके रहस्यको समझे बिनाही कहते हैं, कि जैसे- लाख योजनके मेरुपर्वत में उसकी चूलिका नहीं गिनी जाती, तैसेही १२ महीनों के वर्षमें अधिक महीनाभी नहीं गिना जाता । ऐसा कहकर अधिक महीनेकी गिनती उडाना चाहते हैं, सो उन्होंकी आज्ञानता है, क्योंकि एक लाख योजनके मेरुपर्वत उपर ४० योजनकी उंची चूलिका है, उसपर एक शाश्वत जिन चैत्य है, उसमें १२० शाश्वत जिन प्रतिमायें हैं, इसलिये ४० योजनकी चूलिकाके प्रमाणकी गिनती सहित एक लाख उपर ४०योजनके मेरुपर्वतका प्र माण क्षेत्र समासादि शास्त्रों में खुलासा लिखा है, तैसेही १२ महीनों के ३५४ दिनोंके एकवर्षके प्रमाणउपर अधिकमहीने के दिनों की गिनतीसहित ३८३ दिनाँको वर्षकी गिनती मेंलिये हैं, इसलिये चूलिका के दृष्ठांतसे अधिक महिना गिनती में निषेध नहीं हो सकता, मगर गिनती में विशेष पुष्ट होता है । औरभी देखो- पंचपरमेष्ठि मंत्र कहने से सामान्यता से पांचपदों के ३५ अक्षरोंका नवकार कहाजाताहै, मगर उसपरकी ४ चूलिकाओंके ४ पदके ३३ अक्षर साथमें मिलानेसे विशेषता से नवपद के ६८अक्षरोंका 'नवकार' चूलिका के प्रमाणकी गिनतीस हित कहने में आता है । इसतरह दशैवकालिक व आचारांग की दो दो चूलिकाओंका प्रमाणभी गिनती में आता है। तैसेही सामान्यतासे एक लाख योजनका मेरूपर्वत, व १२ महीनोंका एक वर्ष कहने में आता है । मगर विशेषतासे तो चूलिकाके प्रमाणकी गिनती सहित एकलाख चालीस योजनका मेरूपर्वत, व अधिक महीनेकी गिनती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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