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________________ [३५] नेका समझना चाहिये. और ३५४ दिने, या ३८३ दिने संवत्सरी. पर्वहोताहै, तोभी ३६०दिन या ३९०दिन कहने में आतेहै. सो रुतुसंवसरसंबंधी नहीं. किंतु चद्रं या अभिवर्द्धित संवत्सरसंबंधी व्यवहा. से कहने में आते हैं. देखो-चंद्रमासकी अपेक्षासे एक पक्ष १४ दिन ऊपर कुछ भाग प्रमाणे होताहै, मगर पूरे १५ दिनोंका नहीं होता, तो भी व्यवहारमें लोकसुखसे उच्चारण कर सकें इसलिये १५दिनोंका एकपक्ष कहने में आताहै। यह अधिकार ज्योतिष्करंडपयन्नवृत्ति वगैरह शास्त्रामें खुलासालिखाहै । इसीतरहसे महीनेके३०दिन व व. र्षके३६०दिनभी व्यवहारकी अपेक्षासे समझने चाहिये, मगर निश्चय. में तो जितने दिनोंसे संवत्सरीपर्वमें वार्षिक क्षामणे होवेंगे उतनेही दिनोंके कर्मोंकी निर्जरा होगी, किंतु ज्यादे कम नहीं हो सकेगी। और संजलनीय, प्रत्याख्यानीय, अप्रत्याख्यानीय कषाय की अ. नुक्रमसे, एक पक्षके १५दिन, ४ महीनोके १२०दिन, व १२महीनोंके३६० दिनोंके १ वर्षकी स्थितिकाप्रमाण बतलाया है, सो, व्यवहारसे बतलायाहै । मगर निश्चयमें तो रागद्वेषादि तीव्र परिणामोंके अनुसार न्यूनादिकभी बंध पडताहै । इसलिये उसकी स्थितीके प्रमाणकी गिनती सूर्य संवत्सरकी अपेक्षासे होती है । और क्षामणे तो चंद्र संवत्सरकी अपेक्षासे व्यवहारसे करनेमें आते हैं, सो उपरमें इसका खुलासा लिख चुके हैं । इसलिये ३५४ दिन वर्षके होने परभी व्यवहारिक दृष्टिसे ३६० दिनोंके क्षामणे करनेका, और कषायादि कर्मोंकीस्थिति परिपूर्ण ३६०दिनतक निश्चय भोगनेका, दोनों विषय भिन्न २ अपेक्षासे, अलग २ संवत्सरोसंबंधी हैं, इसलिये इन्होंके आ. पसमें कोई तरहका विरोध भाव नहीं आसकता। जिसपरभी चंद्र संवत्सरसंबंधी व्यवहारिक क्षामणे करनेका,और सूर्यसंवत्सरसंबंधी निश्चयमें कर्मोकीस्थिति पूरेपूरीभोगनेका, रहस्यको समझोबिनाही अ. धिकमहीनेके ३०दिनोंकोगिनतीमेलेनेका छोडदेने के लिये, अधिक महोनकॉगिनतीमें लेवे-तो कषायस्थितिका प्रमाण बढजानेसे मर्यादाउलंघन होनेकाकहतेहैं,सो शास्त्रोंके मर्मको नहीं जाननेके कारणसे अ. शानताजनकहोनेसे सर्वथामिथ्याहै. देखो-- एक युगके दोनों अधिक महीनों के दिनोंको गिनती नहीलेवेतो सूर्यसंवत्सरका प्रमाणभी पूरा नहीं हो सकता, इसलिये दोनों अधिक महीनोंके दिनोंको अवश्यमेव गिनती में लेनेसेही पांच सूर्यसंवत्सरोके एक युगमें १८३० दिन पुरे होते हैं । इसलिये अधिक महीना गिनतीमें नहीं छुट सकता। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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