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________________ [ ६] हेतु भूत है क्योंकि श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रका पाठ तो श्रीगण धर महारानका कहा हुआ है और धार मासके सम्बन्ध घाला है इसलिये उसीकी तो सदाही अच्छी गति है और चार मासके वर्षाकालमें उसी मुजब वर्तने में आता है परन्तु सातवें महाशयजी सूत्रकार महाराजके विरुद्धार्थ में पांच मासके वर्षाकालमें भी उसी पाठको स्थापन करने के लिये सूत्रके पाठ पर ही आक्षेप करते हैं और बाल जीवोंको मिथ्यात्वके भ्रममें गेरते हैं सो क्या गति प्राप्त करेंगे सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जाने और “ आश्विन मासको लेखामें न गिनकर सत्तर दिन कायम रक्खोगे यह भी सातवें महाशयजीका लिखना मिथ्या है क्योंकि हम तो आश्विन मासको लेखा में गिन. करके १०० दिन कायम रखते हैं इस लिये मिथ्या भाषण करनेसे महाब्रतके भङ्गका सातवें महाशयजीको भय लगता हो तो मिथ्या दुष्कृत देना चाहिये और “श्रावण अथवा भाद्रमासको लेखामें न गिनकर पचास दिन कायम रख कर भगवान् की आज्ञाके अनुसार भाद्र सुदी चौथ के रोज सम्वत्सरिक प्रतिक्रमण क्यों नहीं करते" सातवें महाशयजीका इस लेख पर मेरेको इतनाही कहना है कि मास वृद्धिके अभावसे आषाढ चौमासीसे पचास दिने भाद्र शुदी चौथको पर्युषणामें सांवत्सरिक प्रतिक्रमण वगैरह करनेको तो श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञा है परन्तु पचासवें दिनकी रात्रिकोभी उल्लंघन करना नही कल्पता इसलिये दो श्रावण होनेसे श्री कल्पसत्रके तथा उन्हाँकी व्याख्यायों के अनुसार ५० दिमकी गिनतीसे दूसरे श्रावण में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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