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________________ [ ४०५ 1 शासन में लौकिक पञ्चाङ्ग मुजबही तिथि, वार, घड़ी, पल, नक्षत्र, योग, सूर्योदय, दिनमान, तिथिकी हनी, वृद्धि, राशि चन्द्र, पक्ष, मोस, मुहूर्त वगैरह से संसार व्यवहारमें और धर्म व्यवहारमें वर्ताव करनेमें आता है इसलिये लौकिक पञ्चाङ्गमें जिस मासकी वृद्धि होवे उसीको मान्य करके उसी मुजब संसार व्यवहारमें और धर्म व्यवहारमै वर्ताव होनेका प्रत्यक्षमें बनता है इसलिये लौकिक पञ्चाङ्गमें दो श्रावण, दो भाद्रपद और दो आश्चिम वगैरह होवे उसी के गिनतीको निषेध न करते हुवे प्रमाण करमा सो तो पूर्वाचार्योकी आज्ञानुसार तथा युक्ति पूर्वक और प्रत्यक्ष अनुभव से स्वयं सिद्ध है इसलिये अधिक मासकी गिनती निषेध करने वाले अभिनिवेशिक मिथ्यात्वको सेवन करने वाले प्रत्यक्षमें बनते है तो तो विवेकी सज्जन स्वयं विचार लेवेंगे ; and और दो आश्विन होनेसे साम्वत्सरिक प्रतिक्रमणके बाद १० दिने धीमासी प्रतिक्रमण करके दूसरे आश्विनमें विहार करने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि अधिक मास होनेसे साम्वत्सरिक प्रतिक्रमणके बाद १०० दिने कार्त्तिक चौमासी प्रतिक्रमण करके विहार करने में आता है सेा शास्त्रानुमार और युक्ति पूर्वक न्यायकी बात है इसलिये कोई भी दूषण नहीं लब सकता है इसका खुलासा इसी ही ग्रन्थ के पृष्ठ ३५९ ३६० में छप गया है - और "समवायाङ्ग सूत्रके पाठकी क्या गति होगी" सातवें महाशयजीका यह लिखना अभिनिवेशिक मिथ्या. ast प्रगट करने वाला उत्सूत्र भाषण रूप संसार वृद्धिका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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