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________________ [ ३७५ ] तथापि विवेकशून्य हठवादी कोई ऐसी कुतर्क करें किअमुक शास्त्र में मासवृद्धि के अभाव से चन्द्रसम्बत्सर के लिये बारह मासके क्षामणे कहे हैं परन्तु मासवृद्धि होनेसें अभिवर्द्धित सम्वत्सर के लिये तो कुछ नही कहा है, ऐसी कुतर्क करने वालेको अज्ञानीके सिवाय, तत्त्वज्ञ पुरुष और क्या कहेंगे क्योंकि एकके उद्देश्य से जो व्याख्या करी होवे | उसीके ही अनुसार दूसरेके लियेही यथोचित समझनेको श्रीजैनशास्त्रों में मय्यादा है इसलिये जूदे नाम उद्देश्य करके जूदी जूदी व्याख्या शास्त्रकार नहीं करते हैं। परन्तु जो सत्यग्राही विवेकी आत्मार्थी होवेंगे सो तो सद्गुरुकी सेवासे श्रीजैनशास्त्रोंके तात्पर्य्यक समझके सत्यबात ग्रहण करेंगे और विवेक रहित हठवादी होगें जिसके कमौका दोष मत शास्त्रकारों का, जैसे--- श्रीकल्पसूत्रकी व्याख्यायोंमें प्रसिद्ध बात है कि कोई साधु स्थण्डिले जङ्गल में गयाथा सो कुछ ज्यादा देरीसें गुरु पास आया तब उस साधुको गुरु महाराजने देरी से आनेका कारण पूछा तब उस साधुने रस्ते में नाटकीये लोगोंका नाटक देखनेके कारण देरी आना हुवा सो कहा, तब गुरु महाराजने नाटकीये लोगोंका नाटक देखनेकी साधुको मनाई करी तब विवेकी बुद्धिवाले चतुर ये वे तो नाटकणी लुगाइयोंका नाटक वर्जनेका भी स्वयं समझ गये, और विवेक बिनाके थे सो तो नाटकणी लुगाइयोंका नाटक देखनेको खड़े रहे, तब गुरु महाराजके कहने पर विवेक रहित होनेसे बोलेको आपने नाटकीये लोगोंका नाटक देखनेकी मनाई करोथी परन्तु नाटकणी लुगाईयों का नाटक देखने को तो मनाई नही करी थी तब गुरु महा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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