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________________ wojepureyque been MMM jeanserenepeque eseweupnseelps [ ३४६ ] और ( उत्तरपाठकी क्या गति होगी ) सातवें महाशयजीका यह लिखना भी विद्वत्ता के अजीर्णताका है क्योंकि श्रीसमवायाजी सूत्रका पाठ चार मामके वर्षाकाल सम्बन्धी होनेसें चार मासके वर्षाकालमें उसी मुजब वर्ताव होता है। सातवें महाशयजी श्रीगणधर महाराज श्रीसुधर्मस्वामी परन्तु जी कृत श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके पाठका तथा श्री अभयदेव सूरिजी कृत तद्वृत्तिके पाठका अभिप्रायः जाने बिना सूत्र - कार तथा वृत्तिकार महाराजके विरुद्धार्थमें दो श्रावणादि होनेसे पाँच मासके १५० दिनका वर्षाकाल में उमी पाठको आगे करके बालजीवोंको मिथ्यात्व के भ्रममें गेरते हुवे उत्सूत्र भाषणरूप कदाग्रह जमाते हैं सो क्या गति होगी सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जाने । देखिये बड़ेही आश्चर्य्यकी बात कि - अपना कदाग्रहकी उत्सूत्र भाषणरूप कल्पित बातको जमानेके लिये ( उत्तरपाठकी क्या गति होगी ) ऐसा तुच्छ शब्द लिखके श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके पाठ पर आक्षेप करते कुछ लज्जा भी नही पाते हैं यह भी एक कलयुगी विद्वत्ताका नमूना है । और (मूलमन्त्रको अलग छोड़कर) यह लिखना भी 'चोर डंडे-कोटवालको' इस न्यायानुसार खास मातवें महाशयजी आप अनेक बातों में मूलमन्त्ररूप अनेक शास्त्रों के मूलपाठों को अलग छोड़ते हैं फिर दूसरोंको मिथ्या दूषण लगाते हैं सो उचित नहीं है क्योंकि दूसरे श्रावण में पर्युषणा करनेवाले श्रीकल्पसूत्रका मूलमन्त्ररूपी पाठके अनुसारही करते हैं। और श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रका पाठ चार मासके वर्षाकालसम्बन्धी होनेसें उसी मुजबही वर्त्तते हैं इसलिये दूसरे
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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