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________________ [ ३४५ ] मासद्धिके अभावसे पचास दिने भाद्रपद में पर्युषणा कही है नतु मासवृद्धि दो श्रावण होते भी। .. ओर आगे फिर भी पर्युषणा विवारके दूसरे पृष्ठकी ७ वी पंक्ति में १८॥ वीं पंक्ति तक लिखा है कि ( वासाणं सवीसइराइ मासे वइक्वते सत्तरिएहिं राइदिएहिं सेसेहिं इत्यादि समवायाङ्गसूत्रके पाठका पूर्वभाग 'सवीसइ राइमासे वह कंते' पकड़कर उत्तर पाठकी क्या गति होगी इसका विचार न रख मूलमन्त्रको अलग छोड़कर दूसरे श्रावण के सुदीमें पर्युषणापर्वके पाँचकृत्य 'संवत्सरप्रतिक्रान्ति लञ्चनचाष्टमं तपः। सर्वार्हद्भक्तिपूजा च सङ्घस्य क्षामणं मिथः ॥ १॥ अर्थात् १ सांवत्सरिकप्रतिक्रमण, २ केशलुच्चन, ३ अष्टमतपः, ४ सर्वमन्दिरमें चैत्यवन्दन पूजादि, ५ चतुर्विध सङ्घके साथ क्षामणा करते हैं और भक्तों को कराते हैं )। ___सातवें महाशय जीने ऊपरके लेखमें दूसरे श्रावण शुदी में पांचकृत्यों सहित पर्युषणा करनेवालोंको श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके पाठका उत्तर भागको छोड़ करके पूर्वभागको पकड़ने वाले ठहराये है सो अज्ञातपनेसे मिथ्या है क्योंकि श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रका पाठ मासवृद्धिके अभावसे श्रीजैनपञ्चाङ्गा. नुसार चार मासके १२० दिनका वर्षाकालमें चन्द्रसंवत्सरसम्बन्धी प्राचीनकालाश्रयी है और वर्तमानकालमें श्रीकल्पसूत्रके मूल पाठानुसार तथा उन्हीकी अनेक व्याख्यायोंके अनुसार आषाढ़ चौमासीसें ५० दिने दूसरे प्रावणमें पर्युषणा करने में आती हैं इसलिये श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके पाठका उत्तरभागको छोड़कर पूर्वभागको पकड़ने सम्बन्धी सातवें महाशयजीका लिखना मिथ्या है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034484
Book TitleBruhat Paryushana Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManisagar
PublisherJain Sangh
Publication Year1922
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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